
मोदी जी की ‘दोस्ती डिप्लोमेसी’: जब सारे दोस्त बने ग़ैर!
तुर्की को मदद, बदले में मिला पाकिस्तान का साथ – ‘ऑपरेशन दोस्ती’ या ‘ऑपरेशन बेवकूफ़ी’?
पुतिन भाई-भाई, पर न्यूट्रल बने रहे – क्या रूस ने ‘स्पेशल एंड प्रिविलेज्ड स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप’ को कहा ‘टाटा-बाय-बाय’?
ट्रंप महाराज का ‘सीजफायर का ऐश्वर्य’ और मेलोनी जी की ‘मेलोडी वाली नींद’ – मोदी जी की फ्रेंडशिप डिप्लोमेसी का मास्टरस्ट्रोक!
मोदी जी ने तुर्की को भूकंप में मदद करके “वसुधैव कुटुम्बकम” का पाठ पढ़ाया। पर एर्दोगन साहब ने कश्मीर पर पाकिस्तान का साथ देकर “याराना वाली दोस्ती” का नया अध्याय जोड़ दिया! भारत ने दिया पैसा, दवा, सहायता… और तुर्की ने दिया बेराक्टार ड्रोन्स पाकिस्तान को! क्या यही है “विनम्रता के साथ मजबूती” वाली विदेश नीति?
नहीं: “शायद मोदी जी ने ‘दोस्ती’ का मतलब ‘वन-साइडेड लव अफेयर’ समझ लिया!”
रूस-भारत की ‘अनसन गार्डन वाली दोस्ती’: पुतिन भैया, आप भी न्यूट्रल?
जिस रूस को हम “सबसे विश्वसनीय साथी” समझते थे, उसने भारत-पाक टेंशन में बिल्कुल स्विस बैंक की तरह न्यूट्रैलिटी ऑफर की! चीन और तुर्की तो खुलकर पाकिस्तान के साथ खड़े हो गए, पर हमारे “दोस्त” पुतिन जी ने केवल “शांति बनाए रखें” वाला ट्वीट करके काम चला दिया।
लगता है ‘स्पेशल स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप’ का मतलब है – ‘हम तुम्हारे साथ हैं… बस ज़रूरत पड़ने पर नहीं!
ट्रंप महाराज का ‘मैंने कर दिखाया’ और मोदी जी का ‘मौन समर्थन’
डोनाल्ड ट्रंप रोज़ नए-नए दावे करते हैं कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान को सीजफायर करवाया। मोदी जी चुपचाप सुन रहे हैं, शायद सोच रहे हैं – “अरे वाह! हम तो बस मूड ऑफ कर रहे थे, ये तो क्रेडिट लेकर ही मानेंगे!”
तो “क्या मोदी-ट्रंप दोस्ती का असली मतलब था – ‘आप बोलो, हम सुनें… आप क्रेडिट लो, हम चुप रहें’?”
मेलोनी जी की ‘मेलोडी वाली नींद’: जब सपोर्ट माँगो तो सुनाई दे ‘खर्राटों की धुन’!
भारत ने जब इटली से आतंकवाद पर सपोर्ट माँगा, तो मेलोनी जी ने मेलोडी चॉकलेट खाकर गहरी नींद में जवाब दिया! उनका संदेश साफ़ था – “हम आतंकवाद के खिलाफ हैं… पर अभी नींद के खिलाफ जंग ज़्यादा ज़रूरी है!”
काश! मोदी जी ने ‘मेलोडी’ की जगह ‘रेड बुल’ भेजा होता, शायद तब जागकर जवाब देतीं!
फ्रेंडशिप ओवर… अब क्या?
- तुर्की ने दोस्ती का जवाब पाकिस्तानी प्यार से दिया।
- रूस ने दिखाया कि दोस्ती सिर्फ़ तब तक है, जब तक चीन नहीं आ जाता।
- ट्रंप ने सीजफायर का क्रेडिट लेकर मोदी जी को “साइलेंट सपोर्टर” बना दिया।
- मेलोनी ने साबित किया कि इटली की नींद, भारत की चिंता से ज़्यादा महत्वपूर्ण है।
शायद अब विदेश मंत्रालय को ‘दोस्ती के नाम पर भोली-भाली डिप्लोमेसी’ बंद करके ‘काटो-फाड़ो वाली रणनीति’ अपनानी चाहिए… क्योंकि अब तक तो ‘दोस्ती’ के नाम पर सिर्फ़ ‘फ्री की ट्रीट’ ही मिली है!
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