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अलीगढ़ के हरदुआगंज में भीड़तंत्र ने मीट विक्रेताओं को ‘गोमांस’ के शक में पीटा, गाड़ी फूंकी!

नंगा इंसाफ़: बिना सबूत चार मीट विक्रेताओं की पिटाई, पुलिस मूक दर्शक बनी रही!

सेक्युलरिज़्म का पर्दाफाश: अलीगढ़ हिंसा पर खामोशी, पीड़ितों का सवाल—’कहाँ गए सेक्यूलरिज़्के ठेकेदार?

अलीगढ़: चार मीट विक्रेताओं को सिर्फ़ इस शक में बेरहमी से पीटा गया कि वे गोमांस ले जा रहे थे। घटना में न तो कोई जांच हुई, न ही सबूत मांगे गए। सिर्फ़ शक की बुनियाद पर भीड़ ने लाठियां बरसाईं, गाड़ी को आग के हवाले कर दिया, और पीड़ितों के दस्तावेज़ फाड़ डाले।

अलीगढ़ जिले के हरदुआगंज क्षेत्र के अलहदादपुर गांव में एक बार फिर भीड़तंत्र का खौफनाक मंजर देखने को मिला। गत रविवार को चार मीट विक्रेताओं को सिर्फ़ इस शक में बेरहमी से पीटा गया कि वे गोमांस ले जा रहे थे। घटना में न तो कोई जांच हुई, न ही सबूत मांगे गए। सिर्फ़ शक की बुनियाद पर भीड़ ने लाठियां बरसाईं, गाड़ी को आग के हवाले कर दिया, और पीड़ितों के दस्तावेज़ फाड़ डाले।

पीड़ितों में से एक घायल नदीम ने बताया कि “हमारे पास मीट की पर्चियां थीं, लेकिन भीड़ ने कुछ सुने बिना मारना शुरू कर दिया। पुलिस वहाँ मौजूद थी, लेकिन उन्होंने हस्तक्षेप नहीं किया।”

भीड़ ने पीड़ितों को सड़क पर खींचकर नंगा इंसाफ़ किया, जबकि पुलिस मूकदर्शक बनी रही।

गाड़ी में आग लगा दी गई, और पीड़ितों के बिलों को फाड़कर उन्हें “गुनहगार” साबित करने की कोशिश की गई।

प्रशासन और राजनीति की खामोशी:

इस घटना पर स्थानीय प्रशासन और राजनीतिक दलों की ओर से कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं आई।

जिन नेताओं ने चुनावों में “सेक्युलरिज़्म” का झंडा उठाया था, वे इस हिंसा पर गूंगे बने हुए हैं। एक पीड़ित के परिजन ने कहा कि “जिन्होंने टोपी पहनकर वोट मांगे थे, वे आज खून से सनी सड़कों पर चुप क्यों हैं?”

पुलिस ने घटना के बाद केवल पीड़ितों को उठाया, जबकि हमलावरों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।

समाज का सवाल:

यह घटना उस सामाजिक विषमता को उजागर करती है, जहाँ अब “शक” ही फैसले का आधार बन गया है। नाम, शक्ल या पेशे के आधार पर सड़कों पर खून से फैसले लिखे जा रहे हैं। अलीगढ़ से लखनऊ तक की खामोशी यह सवाल खड़ा करती है: “क्या भीड़ की अदालत ही अब देश का कानून बन चुकी है?”

इस घटना ने न्यायिक लाचारी और राजनीतिक दोगलेपन को एक बार फिर उजागर किया है। जो लोग इस ज़ुल्म पर चुप हैं, वे ज़ालिम के साथ खड़े हैं। और जो “सेक्युलर” होने का दावा करते हुए भी मौन धारण किए हुए हैं, उनकी निशानदेही समय करेगा।

 

 

 

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