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“Operation Sindoor” पर प्रोफेसर अली खान की गिरफ्तारी पर सवाल: ‘क़ानून सबके लिए बराबर नहीं?’ वरिष्ठ पत्रकार प्रभाकर मिश्रा का सरकार पर निशाना!

महमूदाबाद के प्रोफेसर की गिरफ्तारी को लेकर विवाद, सहयोगियों और यूनिवर्सिटी ने उठाए सवाल!

सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस: अभिव्यक्ति की आज़ादी बनाम क़ानूनी कार्रवाई, #OperationSindoor मामले में तनाव!

नई दिल्ली। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक प्रभाकर कुमार मिश्रा ने हाल ही में अपने एक्स (ट्विटर) अकाउंट पर सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए एक पोस्ट शेयर किया, जिसमें उन्होंने लिखा, “मतलब क़ानून सबके लिए बराबर नहीं है!” यह टिप्पणी #OperationSindoor से जुड़े एक विवादित मामले में प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी के संदर्भ में की गई है।

#OperationSindoor, जो भारतीय प्रतिनिधिमंडल से जुड़ा एक संवेदनशील मुद्दा है, को लेकर सोशल मीडिया पर व्यापक चर्चा हुई थी। इसी कड़ी में प्रोफेसर अली खान ने अपने विचार व्यक्त किए, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उनकी सफाई में दिए गए बयान और यूनिवर्सिटी के सहयोगियों के समर्थन से यह संकेत मिलता है कि उनकी गिरफ्तारी को लेकर शैक्षणिक और सामाजिक हलकों में असहमति है।

विवाद के प्रमुख बिंदु:

  • अभिव्यक्ति बनाम क़ानून: प्रोफेसर अली खान के समर्थकों का मानना है कि उनकी टिप्पणियों में किसी प्रकार की हिंसा या असंवैधानिक तत्व नहीं थे। उनकी गिरफ्तारी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया जा रहा है।
  • संस्थानों का समर्थन: महमूदाबाद यूनिवर्सिटी के अन्य प्रोफेसर और छात्र ने प्रोफेसर अली के पक्ष में खड़े होकर कहा कि उनकी गिरफ्तारी “अतार्किक और अनुचित” है।
  • सरकारी प्रतिक्रिया: इस मामले में सरकार की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन कानूनी प्रक्रिया को सही ठहराने वाले तर्क दिए जा रहे हैं।

सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ:

  • प्रभाकर मिश्रा जैसे पत्रकारों ने सवाल उठाया है कि क्या क़ानूनी प्रक्रिया में “चुनिंदा लक्ष्यीकरण” हो रहा है।
  • विपक्षी दलों ने इस मामले को “लोकतंत्र के लिए खतरा” बताते हुए जाँच की माँग की है।
  • सोशल मीडिया पर #JusticeForAliKhan और #OperationSindoor ट्रेंड कर रहे हैं, जहाँ नागरिक अधिकारों और न्यायिक पारदर्शिता की माँग उठ रही है।

यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, क़ानून की समानता, और सरकारी नीतियों के बीच तनाव को उजागर करता है। प्रोफेसर अली खान की गिरफ्तारी और उनके समर्थन में उठती आवाज़ें इस बहस को और गहरा कर रही हैं। जब तक सरकार स्पष्टीकरण नहीं देती, तब तक यह विवाद जारी रहने की संभावना है।

प्रोफेसर ने सीऑपरेशन सिंदूर’ पर क्या कहा?

अली खान महमूदाबाद ने सेना की महिला अधिकारियों- कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर शुरुआती मीडिया ब्रीफिंग को दिखावा और सिर्फ पाखंड बताया था। कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान पर भारत की सैन्य कार्रवाई ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के प्रारंभिक चरण के दौरान विदेश सचिव विक्रम मिस्री के साथ मीडिया ब्रीफिंग की थी।

प्रोफेसर ने अपने पोस्ट में लिखा कि “मुझे कर्नल सोफिया कुरैशी की प्रशंसा करते हुए बहुत से दक्षिणपंथी टिप्पणीकारों को देखकर बहुत खुशी हुई। लेकिन, शायद वे उतनी ही जोर से यह भी मांग कर सकते थे कि भीड़ द्वारा हत्या, मनमाने ढंग से बुलडोजर चलाने और भाजपा के नफरत फैलाने के शिकार लोगों को भारतीय नागरिक के रूप में सुरक्षा दी जाए। दो महिला सैनिकों द्वारा अपने निष्कर्षों को पेश करने का नजरिया महत्वपूर्ण है, लेकिन नजरिए को जमीन पर वास्तविकता में बदलना चाहिए। अन्यथा यह सिर्फ पाखंड है।”

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