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मीडिया की भूमिका और राष्ट्रीय एकजुटता पर अभिसार शर्मा का सवाल!

गोदी मीडिया पर फिर ज़हर उगलने का आरोप: अभिसार शर्मा ने उठाए हिन्दू-मुस्लिम बहस और एकजुटता पर सवाल!

क्या ‘गुल्लू-कालू’ और ‘पापा की परियां’ तोड़ेंगी देश की एकजुटता? मीडिया की भूमिका पर ज्वलंत बहस!

सामाजिक सद्भाव vs विषैली डिबेट्स: अभिसार शर्मा का ट्वीट, मीडिया की नैतिकता पर चिंता!

नई दिल्ली। वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (ट्विटर) पर एक विवादित ट्वीट करते हुए सत्ता-समर्थक मीडिया संस्थानों पर गंभीर आरोप लगाए हैं। शर्मा ने व्यंग्यात्मक भाषा में ‘गोदी मीडिया’ को निशाना बनाते हुए कहा कि क्या अब ये “गुल्लू-कालू” और “पापा की परियां” जैसे एंकर कार्यक्रमों के माध्यम से हिन्दू-मुस्लिम विवादों को फिर से भड़ाकर सामाजिक एकता को कमज़ोर करने की कोशिश करेंगे?

शर्मा का ट्वीट – “तो क्या अब गोदी मीडिया के गुल्लू और कालू…और पापा की परियां दोबारा जहरीले हिन्दू-मुस्लिम डिबेट शुरू कर देंगे? क्या ये एकजुटता जो हमने देखी…वो जारी रहेगी या जारी रहने दी जाएगी?” उनका यह सवाल उस समय देश में दिख रही सामूहिक एकजुटता को लेकर है, जिसे मीडिया की विवादास्पद रिपोर्टिंग से खतरा हो सकता है।

गोदी मीडिया’ और ‘विषैली बहसें’ क्या हैं?

‘गोदी मीडिया’ शब्द का इस्तेमाल उन टीवी चैनल्स और पत्रकारों के लिए किया जाता है, जिन पर सरकार या सत्ताधारी दल के पक्ष में पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग करने का आरोप लगता है। शर्मा के अनुसार, ऐसे चैनल अक्सर सनसनीखेज हिन्दू-मुस्लिम मुद्दों को उछालकर समाज में तनाव बढ़ाते हैं। जिनकी भाषा और विषय-चयन को विभाजनकारी माना जाता है।

एकजुटता बनाम मीडिया की भूमिका:

शर्मा का ट्वीट इस बड़े सवाल को उठाता है कि क्या मीडिया राष्ट्रीय एकजुटता को बनाए रखने में सहायक है या फिर उसे तोड़ने का कारण बन रहा है। पिछले कुछ वर्षों में, कई मौकों पर मीडिया की भूमिका पर सवाल उठे हैं, खासकर उन मामलों में जहां धार्मिक या सामाजिक विवादों को अतिरंजित करके पेश किया गया।

प्रतिक्रियाएं और विश्लेषण:

शर्मा के इस ट्वीट को सोशल मीडिया पर व्यापक प्रतिध्वनि मिली है। एक तबके का कहना है कि मीडिया को जनता की आवाज़ बनने के बजाय सत्ता का प्रचारक नहीं बनना चाहिए, वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इसे “लिबरल मीडिया” की अतिशयोक्ति बता रहे हैं। मीडिया विशेषज्ञों का मानना है कि यह बहस मीडिया की नैतिक जिम्मेदारी और पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धांतों को फिर से परिभाषित करने की मांग करती है।

अभिसार शर्मा का यह ट्वीट न सिर्फ मीडिया की भूमिका, बल्कि लोकतंत्र में उसकी जवाबदेही पर भी सवाल खड़ा करता है। ऐसे में, सवाल यह है कि क्या मीडिया सामाजिक सद्भाव को प्राथमिकता देगा या फिर टीआरपी के लिए विषैली बहसों को हवा देता रहेगा? देश की एकजुटता इसी सवाल के जवाब पर निर्भर हो सकती है।

 

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