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इंद्रप्रस्थ कॉलेज में भारतीय संस्कृति और विज्ञान के सामंजस्य पर हुई गहन चर्चा

प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का मेल: मृदा-जल संरक्षण पर सेमिनार में उठे महत्वपूर्ण मुद्दे

सस्टेनेबल भविष्य के लिए पारंपरिक तकनीकों को अपनाने पर जोर, इंद्रप्रस्थ कॉलेज में आयोजित हुई राष्ट्रीय संगोष्ठी

सहारनपुर। इंद्रप्रस्थ इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड टेक्नोलॉजी, सहारनपुर के साइंस विभाग द्वारा “भारतीय संस्कृति और विज्ञान का सामंजस्य” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा और आधुनिक वैज्ञानिक उपलब्धियों के बीच तालमेल को रेखांकित करना था। सेमिनार में विशेषज्ञों ने मृदा प्रबंधन, जल संरक्षण, कृषि विरासत, और आयुर्वेदिक पद्धतियों पर गहन विचार-विमर्श किया।

मुख्य बिन्दुओं पर चर्चा 

प्राकृतिक संसाधनों का प्राचीन प्रबंधन:

विभागाध्यक्ष कल्पना शर्मा ने स्वदेशी मिट्टी और जल प्रबंधन की तकनीकों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्राचीन भारत में इन संसाधनों का संरक्षण सभ्यता का आधार था। उन्होंने चंद्रभागा नदी जैसे ऐतिहासिक उदाहरणों का जिक्र करते हुए आधुनिक समय में इन पद्धतियों की प्रासंगिकता पर जोर दिया।

आधुनिक चुनौतियाँ और समाधान:

शुभम धीमान ने जलवायु परिवर्तन और भूमि क्षरण की चुनौतियों को रेखांकित करते हुए जल पुनर्चक्रण और वर्षा जल संचयन जैसी तकनीकों को अपनाने की वकालत की। उन्होंने कहा कि प्राचीन जल संरचनाएँ, जैसे स्टेपवेल्स, आज भी प्रेरणादायक हैं।

कृषि विरासत का पुनरुद्धार:

साक्षी धीमान ने जैविक खेती और मिश्रित फसल प्रणाली जैसी पारंपरिक कृषि पद्धतियों को टिकाऊ विकास का आधार बताया। उन्होंने कहा कि प्राचीन भारत में भूमि की उर्वरता बनाए रखने के लिए प्राकृतिक उर्वरकों का उपयोग किया जाता था, जो आज के रासायनिक युग में एक मिसाल है।

मृदा संरक्षण और आयुर्वेद:

मानसी रोहिला ने जैविक उर्वरकों और वर्मीकम्पोस्टिंग जैसी तकनीकों के महत्व पर बात की। वहीं, महाविद्यालय की निदेशक डॉ. अंजू वालिया ने आयुर्वेद को न केवल स्वास्थ्य बल्कि पर्यावरण संरक्षण का माध्यम बताया। उन्होंने कहा कि आयुर्वेदिक पद्धतियाँ प्रकृति के साथ सहअस्तित्व का संदेश देती हैं।

समन्वय की आवश्यकता:

अंत में, सायला ने जल संरक्षण की आधुनिक तकनीकों जैसे ग्रे वॉटर ट्रीटमेंट और स्मार्ट इरीगेशन सिस्टम पर चर्चा की। सभी वक्ताओं ने इस बात पर सहमति जताई कि प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का समन्वय ही सतत विकास की कुंजी है।

कार्यक्रम का प्रभाव:

सेमिनार में इंद्रप्रस्थ कॉलेज के समस्त स्टाफ और छात्रों ने सक्रिय भागीदारी की। मंच संचालन अर्शी महमूद ने कुशलता से किया, जिससे कार्यक्रम सुचारू रूप से संपन्न हुआ। यह आयोजन भारतीय संस्कृति और विज्ञान के बीच सेतु बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल साबित हुआ 1519।

 

 

 

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