
वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार पांडे ने इतिहास के पन्नों से उठाए सवाल, कहा- “औरंगज़ेब की क़ब्र तोड़ने का विचार मराठों को भी नहीं आया”
“शाहूजी महाराज ने औरंगज़ेब की क़ब्र पर दी श्रद्धांजलि” “मराठा साम्राज्य ने कभी नहीं की क़ब्र की बेअदबी” जिनके पूर्वज 150 साल तक अंग्रेज़ों की दलाली करते रहे और अब संभाजी महाराज के नाम पर बदले की राजनीति कर रहे हैं।
मराठा शक्ति के विस्तार के बाद भी महाराष्ट्र में मुग़ल विरासत को नुकसान नहीं पहुंचाया गया।
नई दिल्ली: वरिष्ठ पत्रकार व लेखक अशोक कुमार पांडे ने इतिहास की घटनाओं को लेकर एक विवादित ट्वीट करते हुए वर्तमान में “नफ़रती तत्वों” और “अंधभक्तों” पर तीखा प्रहार किया है। पांडे ने 1707 में मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद के ऐतिहासिक प्रसंगों को याद करते हुए कहा कि मराठा शासकों ने भी कभी औरंगज़ेब की क़ब्र को नुकसान पहुंचाने का प्रयास नहीं किया, बल्कि उनके प्रति सम्मान दिखाया।
“शाहूजी महाराज ने औरंगज़ेब की क़ब्र पर दी श्रद्धांजलि”
अपने एक्स (ट्विटर) हैंडल पर पोस्ट में पांडे ने लिखा कि 1707 में औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद, छत्रपति शिवाजी महाराज के पोते और संभाजी महाराज के पुत्र शाहूजी महाराज को मुग़ल कैद से मुक्ति मिली। शाहूजी महाराज ने औरंगज़ेब की क़ब्र पर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित की। पांडे के अनुसार, “शाहूजी संभाजी के सगे बेटे थे, जिन्हें औरंगज़ेब ने मारवाया था। लेकिन शाहूजी को आलमगीर औरंगज़ेब की क़ब्र तोड़ने का ख्याल तक नहीं आया। उल्टे, उन्होंने महाराष्ट्र के सातारा में औरंगज़ेब की बेटी जीनत-उन-निसा के नाम पर ‘बेगम मस्जिद’ भी बनवाई।”
“मराठा साम्राज्य ने कभी नहीं की क़ब्र की बेअदबी”
जिनके पूर्वज 150 साल तक अंग्रेज़ों की दलाली करते रहे और अब संभाजी महाराज के नाम पर बदले की राजनीति कर रहे हैं।
पांडे ने इस बात पर ज़ोर दिया कि औरंगज़ेब के बाद मराठा साम्राज्य का उदय हुआ और मुग़ल सत्ता का पतन शुरू हुआ। 18वीं सदी में मराठों ने दिल्ली तक पर नियंत्रण स्थापित किया, लेकिन कभी भी औरंगज़ेब की क़ब्र को निशाना नहीं बनाया। उन्होंने लिखा कि मराठों को भी औरंगज़ेब की क़ब्र तुड़वाने की बात नहीं सूझी। यह काम तो उन ‘नए फ़िल्मी देशभक्तों’ ने शुरू किया है, जिनके पूर्वज 150 साल तक अंग्रेज़ों की दलाली करते रहे और अब संभाजी महाराज के नाम पर बदले की राजनीति कर रहे हैं।
“इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश करने वालों को आईना”
मराठा शक्ति के विस्तार के बाद भी महाराष्ट्र में मुग़ल विरासत को नुकसान नहीं पहुंचाया गया।
पांडे का यह ट्वीट उन समूहों और व्यक्तियों के खिलाफ़ सीधा हमला माना जा रहा है, जो हाल के दिनों में औरंगज़ेब से जुड़े ऐतिहासिक स्थलों को निशाना बना रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ लोग “अंधराष्ट्रवाद” के नाम पर इतिहास को विकृत कर रहे हैं, जबकि मराठा शासकों ने विजय के बाद भी विरोधियों के प्रति सहिष्णुता दिखाई। पांडे ने यह भी याद दिलाया कि मराठा शक्ति के विस्तार के बाद भी महाराष्ट्र में मुग़ल विरासत को नुकसान नहीं पहुंचाया गया।
सोशल मीडिया पर बहस तेज़
इस पोस्ट के बाद सोशल मीडिया पर इतिहास की व्याख्या को लेकर बहस छिड़ गई है। कुछ यूजर्स ने पांडे के तर्कों का समर्थन करते हुए कहा कि इतिहास को वर्तमान राजनीतिक एजेंडे के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। वहीं, दूसरे पक्ष का मानना है कि औरंगज़ेब के अत्याचारों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
पांडे जी की बातों का निष्कर्ष
अशोक कुमार पांडे का यह हस्तक्षेप उस बड़े सवाल को उठाता है कि क्या इतिहास को आज की राजनीतिक लड़ाइयों का हथियार बनाना उचित है? उनका कहना है कि जिनके पूर्वजों ने अंग्रेज़ों के साथ समझौता किया, वे आज “झूठे इतिहास” के सहारे “सच्चे योद्धाओं” का मुकुट ओढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। यह बहस अब सिर्फ़ इतिहास तक सीमित नहीं, बल्कि राष्ट्रीय पहचान और सांस्कृतिक विरासत के सवालों तक पहुंच चुकी है।