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Blood Cancer: जामिया को मिली बड़ी कामयाबी;  ब्लड कैंसर के इलाज के लिए एक क्रांतिकारी जीन थेरेपी विकसित करने का दावा!

जामिया मिलिया इस्लामिया द्वारा ब्लड कैंसर की वैक्सीन बनाने का दावा, चौथे चरण के मरीज भी हुए ठीक; जानें कब तक बाजार में आ सकती है

जामिया द्वारा ब्लड कैंसर की वैक्सीन विकसित करने का ऐतिहासिक दावा, चौथे चरण के मरीज में सफलता

नई दिल्ली। जामिया मिल्लिया इस्लामिया (JMI) के शोधकर्ताओं ने ब्लड कैंसर के इलाज के लिए एक क्रांतिकारी जीन-आधारित थेरेपी विकसित करने का दावा किया है। इस थेरेपी के क्लीनिकल ट्रायल के दौरान चौथे चरण के ब्लड कैंसर से पीड़ित एक मध्यम आयु वर्ग के मरीज को पूरी तरह से कैंसर-मुक्त होने में सफलता मिली है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह वैक्सीन अगले 3-4 वर्षों में किफायती दामों पर बाजार में उपलब्ध हो सकती है।

कैसे काम करती है यह जीन थेरेपी?

डॉ. अरीज अख्तर (शोध टीम की सदस्य) के अनुसार, ब्लड कैंसर तब विकसित होता है जब संक्रमण से लड़ने वाली बी-सेल्स असामान्य होकर टी-सेल्स पर हावी हो जाती हैं। इस समस्या के समाधान के लिए शोधकर्ताओं ने निम्नलिखित चरणों वाली एक अनोखी तकनीक विकसित की है:

कैसे काम करती है यह जीन थेरेपी?

  1. टी-सेल निकालना: मरीज के रक्त से टी-सेल्स को अलग किया जाता है।
  2. लैब में मॉडिफिकेशन: इन कोशिकाओं को जीन एडिटिंग के जरिए इस तरह संशोधित किया जाता है कि वे कैंसरग्रस्त बी-सेल्स की पहचान कर सकें।
  3. वापस इंजेक्शन: मजबूत टी-सेल्स को मरीज के शरीर में वापस डाला जाता है, जो कैंसर से प्रभावी लड़ाई करते हैं।

चौथे स्टेज के मरीज में चमत्कारिक सुधार

क्लीनिकल ट्रायल के दौरान, चौथे चरण के ब्लड कैंसर से जूझ रहे एक मरीज को यह थेरेपी दी गई। टीम के दावे के अनुसार, उपचार के बाद मरीज के शरीर से कैंसर कोशिकाएं पूरी तरह समाप्त हो गईं। इसके अलावा, अब तक इस थेरेपी के कोई गंभीर दुष्प्रभाव सामने नहीं आए हैं। शोधकर्ताओं ने इस तकनीक का पेटेंट कराने के लिए आवेदन भी कर दिया है।

टीम को मिला अंतरराष्ट्रीय समर्थन

इस शोध को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है। प्रतिष्ठित जर्नल “सेल रिपोर्ट मेडिसिन” ने इस अध्ययन को प्रकाशित किया है। डॉ. तनवीर अहमद (एमसीएआरएस में सहायक प्रोफेसर और शोध प्रमुख) ने बताया कि यह तकनीक मौजूदा कैंसर उपचारों (जैसे कीमोथेरेपी) से अलग है, क्योंकि यह शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को ही कैंसर से लड़ने के लिए प्रशिक्षित करती है। उन्होंने कहा कि यह थेरेपी न सिर्फ प्रभावी है, बल्कि इसकी लागत भी अन्य वैक्सीनों की तुलना में कम होगी।

कब तक मिलेगी मरीजों को राहत?

शोधकर्ताओं के अनुसार, यदि सभी नियामक मंजूरियां समय पर मिलती हैं, तो यह थेरेपी 2026-27 तक बाजार में आ सकती है। यह उन लाखों मरीजों के लिए आशा की किरण है, जो ब्लड कैंसर के अंतिम चरण में इलाज के विकल्प तलाश रहे हैं।

इस पद्धति को थर्ड जेनरेशन जीन थेरेपी का हिस्सा माना जा रहा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि तीन साल के अथक प्रयास के बाद यह सफलता मिली है। यदि आगे के परीक्षण सफल रहे, तो यह भारत सहित वैश्विक स्तर पर ब्लड कैंसर के इलाज में नया मील का पत्थर साबित होगा।

 

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