
पहलगाम आतंकी हमले के बाद बढ़ता साम्प्रदायिक उन्माद! देशभर में मुस्लिम समुदाय निशाने पर!
भोपाल में शराबियों ने मुस्लिम पुलिसकर्मी को पीटा, ‘हिंदू होने’ का दिखाया दंभ; प्रशासन मूक!
देश के मुसलमानों ने हमेशा भाईचारे और आपसी सद्भाव की मिसाल पेश की है: कोविड काल की एक ऐसी ही तस्वीर जो आज भी लोगों को भावुक कर देती है!
साम्प्रदायिक उन्माद का बढ़ता साया: पहलगाम हमले के बाद मुस्लिम समुदाय पर हिंसा!
नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद देशभर में साम्प्रदायिक तनाव का माहौल बनता दिख रहा है। कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा देशभर में मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने और उन्हें “गद्दार” बताने की घटनाएं बढ़ी हैं। दिलचस्प बात यह है कि इन हमलों के दौरान पुलिस और प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं।
भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन पर हुई एक घटना ने इस उन्माद की चरम स्थिति को उजागर किया है। मुस्लिम नाम के बैज वाले पुलिस कांस्टेबल दौलत खान ने ड्यूटी के दौरान शराब पीकर उपद्रव कर रहे युवकों को हटाने का आदेश दिया, लेकिन इस पर उन्हें “मुस्लिम होने” की वजह से पीटा गया और उनके कपड़े फाड़ दिए गए। हमलावरों ने “हिंदू होने” का हवाला देकर अन्य पुलिसकर्मियों को भी धमकाया और कहा कि तुम एक साइड रहो तुम हिन्दू होकर इस मुस्लिम की हिमायत कर रहे हो। यह घटना साम्प्रदायिक नफ़रत की बढ़ती प्रवृत्ति और नफ़रत की चरमसीमा को रेखांकित करती है।
प्रशासन की चुप्पी पर सवाल
ऐसी घटनाओं पर पुलिस-प्रशासन की चुप्पी और निष्क्रियता ने चिंता बढ़ाई है। नागरिक संगठनों का आरोप है कि धार्मिक उन्माद फैलाने वाले तत्वों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हो रही, जिससे हिंसा को और बढ़ावा मिल रहा है, और इस बात से चिन्ता और गहरा जाती है। भोपाल में हुई पुलिसकर्मी के साथ मारपीट और भी चिंतित कर देती है।
देश के मुसलमानों ने हमेशा भाईचारे और आपसी सद्भाव की मिसाल पेश की है: कोविड काल की एक ऐसी ही तस्वीर जो आज भी लोगों को भावुक कर देती है!
मुजफ्फरनगर से कविड काल की एक ऐसी घटना सामने आई है, जो आज तक साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल बनी हुई है। कोविड की दूसरी लहर के दौरान जब हिंदू युवक अनुभव शर्मा का निधन हुआ, तो उनके परिवार वाले संक्रमण के डर से अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सके। इस मुश्किल घड़ी में अनुभव के मुस्लिम मित्र मोहम्मद यूनुस आगे आए थे। आँसुओं के साथ उन्होंने न केवल मित्र की चिता को मुखाग्नि दी थी, बल्कि सभी रीति-रिवाजों का पालन किया। यूनुस ने कहा था कि “धर्म से ऊपर इंसानियत होती है। अनुभव मेरा भाई था, उसका फर्ज़ मैंने निभाया।
पहलगाम हमले के विरोध में हैदराबाद में असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व में मुसलमानों ने काली पट्टी बांध कर पहलगाम आतंकी हमले का पुरज़ोर विरोध किया। उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के मुस्लिम समुदाय ने भी पहलगाम हमले की कड़ी निंदा की। लखनऊ, कासगंज, और बुलंदशहर जैसे शहरों में मुस्लिमों ने काली पट्टी बाँधकर नमाज अदा की और आतंकवाद के खिलाफ दुआएं माँगीं। कुछ स्थानों पर आतंकवाद का प्रतीकात्मक पुतला भी जलाया गया
नफ़रत के बीच एक सवाल: क्या हम भूल रहे हैं भारत की मूल भावना?
ये दोनों घटनाएं समाज के सामने एक सवाल खड़ा करती हैं। एक तरफ जहाँ साम्प्रदायिक उन्माद की आग लोगों को बाँट रही है, वहीं दूसरी तरफ यूनुस जैसे लोग “एकता में अनेकता” के सिद्धांत को जीवित रखे हुए हैं। नागरिकों और अधिकारियों से अपील की जा रही है कि वे हिंसा और भेदभाव के खिलाफ मुखर हों, ताकि देश की साझा विरासत बचाई जा सके।
जबकि पहलगाम हमले के बाद की हिंसा राष्ट्रीय एकता के लिए चुनौती बन गई है, मोहम्मद यूनुस जैसे उदाहरण याद दिलाते हैं कि भारत की ताकत उसकी विविधता और आपसी सम्मान में निहित है। अब यह समाज और सरकार पर निर्भर है कि वे किस रास्ते को चुनते हैं — नफ़रत का या भाईचारे का।