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कैराना में फर्जी अल्ट्रासाउंड और एक्स-रे केंद्रों की बाढ़, मरीजों की जान पर खतरा!

गलत रिपोर्ट और अनावश्यक जांचों का जाल: स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर धंधेबाजी!

प्रशासन से गुहार: फर्जी केंद्रों पर तत्काल कार्रवाई और दोषियों की पहचान करें!

कैराना। (शामली) शहर के विभिन्न इलाकों में फर्जी अल्ट्रासाउंड और एक्स-रे केंद्रों का जाल सामने आया है, जो मरीजों को सस्ती दरों और आकर्षक ऑफर के नाम पर बरगलाकर उनकी जान से खिलवाड़ कर रहे हैं। इन केंद्रों पर न तो प्रशिक्षित स्टाफ मौजूद है, न ही मानक उपकरण, फिर भी ये गैर-पेशेवर तरीके से जांच रिपोर्ट तैयार कर मरीजों को गलत इलाज की ओर धकेल रहे हैं।

कैसे काम करते हैं ये फर्जी केंद्र?

आकर्षक ऑफर और सस्ती दरें: इन केंद्रों में अल्ट्रासाउंड और एक्स-रे की जांच महज ₹100-200 में की जाती है, जो अधिकृत केंद्रों की तुलना में काफी कम है। यही कारण है कि ग्रामीण और निम्न आय वर्ग के मरीज इनकी ओर आकर्षित होते हैं।

गलत रिपोर्ट का खेल: पश्चिम चंपारण के मामले की तरह, कैराना में भी एक ही मरीज की दो अलग-अलग केंद्रों में जांच कराने पर रिपोर्ट में विसंगतियां पाई गईं। उदाहरण के लिए, एक मरीज को पथरी का आकार 3.5 एमएम बताया गया, जबकि दूसरी जगह यह 7 एमएम निकला।

अनाधिकृत संचालन: अधिकतर केंद्रों के पास न तो लाइसेंस है, न ही चिकित्सक या सोनोग्राफर। कुछ केंद्र तो नकली नामों से संचालित हो रहे हैं।

मरीजों के लिए खतरे:

गलत निदान और इलाज: फर्जी रिपोर्ट के आधार पर मरीजों को अनावश्यक दवाएं या ऑपरेशन करवाने पड़ते हैं, जो जानलेवा साबित हो सकते हैं।

आर्थिक शोषण: अनावश्यक जांचों और दवाओं के नाम पर मरीजों से हजारों रुपए ऐंठे जाते हैं।

स्वास्थ्य संकट: गलत इलाज से मरीजों की स्थिति बिगड़ती है, और कई बार उन्हें सरकारी अस्पतालों में भर्ती होना पड़ता है, जहां डॉक्टरों के लिए इलाज करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

प्रशासन की लापरवाही और जनता की मांग:

स्थानीय निवासियों का आरोप है कि स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन इन केंद्रों के खिलाफ कार्रवाई करने में नाकाम रहे हैं। हालांकि, बेगूसराय और सरायकेला जैसे जिलों में हाल ही में ऐसे केंद्रों को सील करने और संचालकों के खिलाफ केस दर्ज करने की कार्रवाई हुई है। कैराना के लोगों ने भी मांग की है कि:-

तत्काल छापेमारी कर इन केंद्रों को बंद किया जाए।

स्वास्थ्य निरीक्षण अभियान चलाकर अवैध संचालन रोका जाए।

जागरूकता अभियान के माध्यम से लोगों को इन फर्जी सेवाओं के खतरों से अवगत कराया जाए।

चिकित्सा अधिकारियों का कहना है कि ऐसे केंद्रों पर आपत्तिजनक विज्ञापन अधिनियम, 1954 और नर्सिंग होम एक्ट के तहत कार्रवाई की जा सकती है। साथ ही, सरकारी अस्पतालों में अल्ट्रासाउंड मशीनों की उपलब्धता बढ़ाने और स्टाफ की तैनाती सुनिश्चित करने से इन समस्याओं को कम किया जा सकता है।

कैराना में स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर हो रही यह धंधेबाजी न केवल मरीजों के जीवन को जोखिम में डाल रही है, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करती है। प्रशासन को चाहिए कि वह पश्चिम चंपारण और बेगूसराय जैसे मॉडलों से सीख लेते हुए कड़े निरीक्षण और कानूनी कार्रवाई शुरू करे, ताकि निर्दोष मरीजों का शोषण रुक सके।

 

 

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