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दारुल उलूम देवबंद ने ज़ाएरीन से की अपील: “तालीमी माहौल बनाए रखने के लिए महिलाओं और बच्चों को साथ न लाएं

ईद के बाद एडमिशन हलचल में बाधा न हो, इसलिए दारुल उलूम ने जारी की विशेष गाइडलाइन

दीनी इदारों की शिक्षण व्यवस्था का सम्मान करें – मौलाना क़ारी इसहाक गोरा ने दारुल उलूम के फ़ैसले को दिखाया समर्थन

देवबंद/सहारनपुर: देश के प्रतिष्ठित इस्लामी शिक्षण संस्थान दारुल उलूम देवबंद ने ज़ाएरीन (धार्मिक यात्रियों) के लिए एक महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किया है। संस्थान ने अनुरोध किया है कि लोग अपने साथ छोटे बच्चों और महिलाओं को लेकर परिसर में प्रवेश न करें। यह कदम ईद-उल-अज़हा के बाद संस्थान में होने वाली भीड़ और नए छात्रों के दाख़िले की प्रक्रिया को सुचारु रखने के लिए उठाया गया है।

क्यों ज़रूरी है यह अपील?

दारुल उलूम के प्रवक्ता के अनुसार, ईद के बाद देशभर से हज़ारों नए तालिबे-इल्म (धार्मिक छात्र) संस्थान में एडमिशन के लिए पहुंचते हैं। इस दौरान परिसर में अत्यधिक भीड़, शोरगुल और हलचल की स्थिति बन जाती है, जिससे पढ़ाई, प्रवेश प्रक्रिया और छात्रों की दिनचर्या प्रभावित होती है। संस्थान का मानना है कि महिलाओं और बच्चों की उपस्थिति से यह समस्या और बढ़ सकती है। इसलिए, “तालीमी माहौल” को बनाए रखने के लिए यह निर्णय लिया गया है।

उलेमा ने जताया समर्थन

प्रख्यात देवबंदी विद्वान मौलाना क़ारी इसहाक गोरा ने इस फ़ैसले का समर्थन करते हुए कहा, “दीनी शिक्षण संस्थानों का सम्मान और उनके नियमों का पालन करना हम सभी का कर्तव्य है। दारुल उलूम ने यह कदम विद्यार्थियों की पढ़ाई और संस्थान के अनुशासन को ध्यान में रखकर उठाया है।” उन्होंने आम जनता से अपील की कि वे संस्थान के “हिकमत-भरे निर्णय” का सम्मान करें और सहयोग दें।

क्या है संस्थान का उद्देश्य?

दारुल उलूम ने स्पष्ट किया कि यह निर्देश किसी प्रतिबंध के तौर पर नहीं, बल्कि शैक्षिक व्यवस्था और सुरक्षा को प्राथमिकता देने के लिए लागू किया गया है। संस्थान के अधिकारियों ने बताया कि परिसर में शांति और सुरक्षा बनाए रखने के साथ-साथ नए छात्रों के ठहरने और पढ़ाई की तैयारी में आने वाली चुनौतियों को ध्यान में रखा गया है।

दारुल उलूम देवबंद का यह निर्णय इस्लामी शिक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। संस्थान ने लोगों से सहयोग की उम्मीद जताते हुए कहा है कि इस कदम से न केवल छात्रों का ध्यान पढ़ाई में लगेगा, बल्कि धार्मिक शिक्षा की गरिमा भी बनी रहेगी।

 

 

 

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