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सहारनपुर/देवबंद: मौलाना क़ारी इसहाक़ गोरा बताते हैं कि आज के वक़्त में ज़कात का मुस्तहिक़ वही होता है जिसे शरीयत ने हक़दार क़रार दिया है।

 

सबसे पहले वो ग़रीब और मोहताज लोग जो अपनी बुनियादी ज़रूरतें पूरी नहीं कर सकते, ज़कात के हक़दार हैं। ऐसे लोग जो फाके कर रहे हों, जिनके पास खाने-पीने, पहनने और रहने के लिए कुछ न हो, उन्हें ज़कात दी जा सकती है।

 

इसके अलावा जो लोग कर्ज़दार हैं और अपना कर्ज़ अदा करने की ताक़त नहीं रखते, लेकिन उनकी मआश (कमाई) इतनी नहीं कि वो आसानी से कर्ज़ उतार सकें, तो ऐसे लोगों की मदद ज़कात से की जा सकती है।

 

जो लोग अल्लाह की राह में लगे हुए हैं, जैसे दीनी तालीम हासिल करने वाले तलबा (स्टूडेंट्स) या ऐसे लोग जो दीन की ख़िदमत कर रहे हैं लेकिन उनके पास रोज़ी-रोटी का कोई ख़ास ज़रिया नहीं, वो भी ज़कात के मुस्तहिक़ हो सकते हैं।

 

मुसाफ़िर जो सफ़र में परेशान हो जाए और उसके पास घर लौटने या अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए कुछ न रहे, उसे भी ज़कात दी जा सकती है, चाहे वो आम तौर पर मालदार ही क्यों न हो।

 

इसके अलावा जो लोग किसी मजबूरी की वजह से काम नहीं कर पा रहे, यतीम बच्चे, बेसहारा औरतें, बुज़ुर्ग जो अपनी रोज़ी कमाने के क़ाबिल नहीं रहे, वो सब ज़कात के मुस्तहिक़ हो सकते हैं।

 

मौलाना क़ारी इसहाक़ गोरा ने यह भी बताया कि ज़कात सिर्फ़ उन्हीं लोगों को दी जानी चाहिए जो वाक़ई ज़रूरतमंद हों, और इसे किसी ग़लत जगह खर्च करने से बचना चाहिए।

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