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उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे विधानसभा का चुनाव करीब आ रहा है, वैसे-वैसे अलग-अलग पार्टियां इस रण को जीतने के लिए अपनी सारी ताकत झोंकती दिख रही हैं. इसी बीच, केंद्रीय गृह मंत्री और बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह 29 अक्टूबर को लखनऊ पहुंचे. अमित शाह ने यहां बीजेपी के नए सदस्यता अभियान को लॉन्च कर एक तरह से यूपी में बीजेपी के चुनावी कार्यक्रम को और धार देने की कोशिश की.

 

अमित शाह ने अपने संबोधन में एक साफ लाइन ली और कहा कि अगर 2024 में पीएम मोदी को जिताना है, तो 2022 में योगी आदित्यनाथ को जिताना होगा. शाह के इस वक्तव्य को यूपी में नेतृत्व के सवालों पर पूर्ण विराम समझा गया. माना गया कि शाह ने संगठन और जनता, दोनों को समझा दिया कि 2022 के लिए बीजेपी का दांव सीएम योगी आदित्यनाथ के चेहरे पर ही है. पर क्या शाह संगठन में नेतृत्व के सवाल को पूरी तरह सॉल्व कर पाए?

          असल में यह सवाल यूं ही नहीं खड़ा हुआ है. अमित शाह की तरफ से सीएम योगी आदित्यनाथ के नाम पर फाइनल मुहर लगाने की कवायद को अभी दो दिन भी नहीं बीते कि यूपी के डिप्टी सीएम और 2017 से ‘सीएम इन वेटिंग’ समझे जा रहे केशव प्रसाद मौर्य का एक बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. केशव प्रसाद मौर्य हाथरस में कुछ ऐसा बोल बैठे, जिससे इस बात के कयास लगाए जाने लगे हैं कि क्या शाह के स्पष्ट संदेश के बाद भी बीजेपी में नेतृत्व के सवाल को लेकर जमी धुंध साफ नहीं हो पाई है?

अहम बिंदु

आइए पहले जानते हैं कि केशव प्रसाद मौर्य ने ऐसा क्या कह दिया है. असल में डिप्टी सीएम केशव रविवार को एक लोकार्पण कार्यक्रम में हाथरस पहुंचे थे. इस दौरान पत्रकारों ने उनसे पूछ लिया कि भारतीय जनता पार्टी 2022 का चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ेगी.


          अब यह शायद दूसरे नेताओं के लिए सहज सवाल हो और इसका जवाब भी उतना ही सहज, लेकिन यहां मामला केशव प्रसाद मौर्य का था. केशव प्रसाद मौर्य ने सिर्फ इतना ही कहा कि पार्टी कमल के फूल के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी और फिर निकल लिए. ऐसा कोई पहली बार नहीं था जब केशव प्रसाद मौर्य सीएम योगी का नाम लेने से बचे. इससे पहले भी केशव प्रसाद मौर्य कह चुके हैं कि सीएम कौन होगा, ये विधायक दल तय करता है.

लगे हाथ यह भी जान लीजिए कि अमित शाह ने आखिरकार क्या कहा था. असल में अमित शाह ने तमाम अटकलों के बीच एक तरह से इस सवाल का सीधा जवाब दे दिया था कि बीजेपी अगर फिर से यूपी की सत्ता में आई तो सीएम कौन बनेगा.

          दरअसल अमित शाह ने कहा था, ”अगला जो लोकसभा का चुनाव जीतना है 2024 में, उसकी नींव डालने का काम उत्तर प्रदेश का 2022 का विधानसभा चुनाव करने वाला है. ये मैं उत्तर प्रदेश की जनता को बताने आया हूं कि मोदी जी को फिर से एक बार 2024 में प्रधानमंत्री बनाना है तो 2022 में फिर एक बार योगी जी को मुख्यमंत्री बनाना पड़ेगा.” इस तरह अमित शाह ने अपने बयान से मैसेज दिया कि यूपी में मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ही बीजेपी अपना मुख्यमंत्री पद का दावेदार मानकर चल रही है.

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          कहते हैं कि राजनीति में कही गई बातों के कई मायने निकाले जाते हैं. अक्सर जो कहा नहीं जाता, उस बात के भी गंभीर मायने होते हैं. केशव प्रसाद मौर्य के इस बयान से एक बार फिर ये सवाल उठ रहे हैं कि क्या केंद्रीय लीडरशिप जिस तरह से योगी के नाम को लेकर साफ संदेश देने की कोशिश कर रही है, वह सफल नहीं हो रही? क्या यूपी बीजेपी में अभी सीएम योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व को लेकर आम राय नहीं बन पाई है? क्या केशव प्रसाद मौर्य 2022 में अपनी दावेदारी की सुगबुगाहटों को हवा दे रहे हैं?

असल में 2017 के विधानसभा चुनावों के परिणाम जब सामने आए तो सीएम बनने की रेस में केशव प्रसाद मौर्य का नाम भी फ्रंट लाइन में समझा जा रहा था. ऐसा इसलिए भी क्योंकि माना जा रहा था कि बीजेपी को सत्ता में लाने के लिए गैर यादव ओबीसी जातियों के सपोर्ट ने अहम भूमिका निभाई थी और इसमें केशव प्रसाद मौर्य का अहम रोल समझा गया. हालांकि तब बीजेपी ने चौंकाते हुए सीएम के लिए योगी आदित्यनाथ का नाम आगे कर दिया था.


तब से लेकर आज तक केशव प्रसाद मौर्य से इस संबंध में सवाल पूछे जाते हैं. विपक्ष भी बीते दिनों बीजेपी पर हमलावर रहा कि जब पिछड़ों का वोट लेने की बारी आई तो केशव प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं का चेहरा आगे किया गया और सीएम बनाने की बारी आई तो योगी आदित्यनाथ का नाम आगे कर दिया गया.

          ऐसी स्थिति में बीजेपी के लिए बेहद जरूरी है कि नेतृत्व को लेकर एकजुटता तो रहे ही, पार्टी संग मौजूद रहे जातियों के अंब्रेला में भी कोई छेद न हो. हालांकि केशव प्रसाद मौर्य के बयानों से निकल रहे संकेत बीजेपी के लिए टेंशन बढ़ाने वाले जरूर लग रहे हैं. अब यह देखना रोचक होगा कि इस बयान का अगला अध्याय किस रूप में सामने आता है.

मुहम्मद सलमान

 

 

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