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संयुक्त राष्ट्र की विफलता: गाज़ा से ईरान तक अराजकता और असमर्थता का संकट!

संयुक्त राष्ट्र का अस्तित्व सामूहिक सुरक्षा के सिद्धांत पर टिका है, लेकिन जब शक्तिशाली देश चार्टर का उल्लंघन करते हैं (जैसे इज़राइल का गाज़ा अभियान या ईरान का परमाणु उन्माद) और UNSC उन्हें रोकने में विफल रहता है, तो इसकी विश्वसनीयता समाप्त हो जाती है।

प्रमुख घटनाओं का क्रम:

गाज़ा में नरसंहार: इज़राइल ने 7 अक्टूबर 2023 के हमास हमले के बाद गाज़ा में सैन्य अभियान चलाया, जिसमें 41,689 से अधिक फिलिस्तीनियों की मौत हुई (हमास-संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार)।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इसे “अपने कार्यकाल में सबसे घातक सैन्य अभियान” बताया, परंतु अमेरिका के वीटो के कारण UNSC प्रभावी कार्रवाई नहीं कर सका।

ईरान-इज़राइल हिंसक विस्तार:

अप्रैल 2024 में ईरान ने इज़राइल पर 200+ ड्रोन और मिसाइलें दागीं, जिसे ईरान ने “आत्मरक्षा” (चार्टर का अनुच्छेद 51) और दमस्कस में अपने दूतावास पर इज़राइली हमले का प्रतिशोध बताया।

इज़राइल ने जून 2025 में ईरान पर हवाई हमले फिर शुरू किए, जिसके जवाब में ईरान ने तीसरा यूरेनियम संवर्धन केंद्र सक्रिय करने की घोषणा की।

अमेरिकी भूमिका:

अमेरिका ने इज़राइल को “अटल समर्थन” देते हुए ईरानी हमलों को रोकने में सैन्य सहायता दी, लेकिन गाज़ा में इज़राइली कार्रवाइयों पर मौन रहा।

UNSC में अमेरिका ने ईरान के विरुद्ध प्रतिबंधों का प्रस्ताव रखा, किंतु इज़राइल की आलोचना को वीटो किया।

संयुक्त राष्ट्र की संरचनात्मक विफलताएँ:

वीटो शक्ति का दुरुपयोग: अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने इज़राइल के विरुद्ध किसी भी प्रस्ताव को ब्लॉक किया। उदाहरण के लिए, दमस्कस में ईरानी दूतावास हमले (अप्रैल 2024) पर UNSC की आपात बैठक हुई, लेकिन पश्चिमी देशों ने निंदा प्रस्ताव रोक दिया।

पक्षपातपूर्ण प्रतिक्रिया: महासचिव गुटेरेस ने ईरानी हमलों की तुरंत निंदा की, लेकिन इज़राइल द्वारा गाज़ा में नागरिक मौतों पर प्रतिक्रिया धीमी रही। इसके परिणामस्वरूप इज़राइल ने उन्हें “व्यक्ति नॉन ग्राटा” घोषित किया और प्रवेश प्रतिबंधित किया।

निरस्त्रीकरण में विफलता: अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने जून 2025 में ईरान को परमाणु संधि उल्लंघन का दोषी पाया। जवाब में ईरान ने उन्नत सेंट्रीफ्यूज लगाए और यूरेनियम संवर्धन बढ़ाया, जिससे परमाणु प्रसार का खतरा बढ़ा।

क्या संयुक्त राष्ट्र अप्रासंगिक हो चुका है?:

रूस व चीन का रुख: रूस ने पश्चिमी देशों की “दोगली नीति” की आलोचना करते हुए कहा कि ईरान ने “असाधारण संयम” दिखाया, जबकि चीन ने गाज़ा संघर्ष को मध्य पूर्व अशांति का मूल कारण बताया।

सुधार की माँग:

भारत जैसे देश UNSC में स्थायी सीटों के विस्तार और वीटो शक्ति सीमित करने की वकालत कर रहे हैं। विश्लेषकों का मानना है कि वर्तमान संरचना 1945 की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को दर्शाती है, न कि आज की बहुध्रुवीय दुनिया को।

संयुक्त राष्ट्र का अस्तित्व सामूहिक सुरक्षा के सिद्धांत पर टिका है, लेकिन जब शक्तिशाली देश चार्टर का उल्लंघन करते हैं (जैसे इज़राइल का गाज़ा अभियान या ईरान का परमाणु उन्माद) और UNSC उन्हें रोकने में विफल रहता है, तो इसकी विश्वसनीयता समाप्त हो जाती है। हालाँकि, भंग करने के बजाय मौलिक सुधार—जैसे वीटो सुधार, पारदर्शिता बढ़ाना, और सैन्य हस्तक्षेप के वैकल्पिक तंत्र—इसे पुनर्जीवित कर सकते हैं। अन्यथा, मध्य पूर्व में “आँख के बदले आँख” का चक्र (deadly cycle of tit-for-tat) जारी रहेगा।

 

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