
अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस पर कांधला में पद्मश्री बाबू रफीक अहमद मेमोरियल मुशायरा-कवि सम्मेलन का आयोजन!
देशभर के मशहूर शायरों ने सुनाया दिल छू लेने वाला कलाम, श्रोता रहे मंत्रमुग्ध, श्रमिक सम्मान और साहित्यिक विरासत को समर्पित हुआ कांधला का ऐतिहासिक मुशायरा!
कांधला। अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के अवसर पर 3 मई की शाम मंडप स्कूल भवन में पद्मश्री बाबू रफीक अहमद मेमोरियल के तहत सालाना अखिल भारतीय मुशायरा-कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम श्रमिकों के सम्मान और साहित्यिक समृद्धि को बढ़ावा देने के संदेश के साथ संपन्न हुआ।
दीप प्रज्वलन और अतिथियों का स्वागत:
कार्यक्रम का शुभारंभ सभासद जुनेद मुखिया और विधान परिषद सदस्य वीरेंद्र सिंह ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलन कर किया। मुख्य अतिथि के रूप में कांधला चेयरमैन नजमुल इस्लाम के भाई बदरुल इस्लाम मौजूद रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कैराना नगर पालिका परिषद के चेयरमैन शमशाद अंसारी ने की। विशेष अतिथियों में चौधरी बाबर जंग, सभासद अफजाल अली, विष्णु प्रकाश अग्रवाल, अब्दुर्रहमान अंसारी अदीब कैरानवी, चौधरी वकील जंग प्रधान और गुलशन खन्ना शामिल रहे।
शायरों ने बांधा जादू:
देश भर से पधारे मशहूर शायरों और कवियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को देर रात तक मंत्रमुग्ध रखा। बिलाल सहारनपुरी, शरफ नानपारवी, राहत हरारत (चेन्नई), गुलरेज दैवासी (मध्य प्रदेश), नवीन नीर (चंडीगढ़), मनु बदायूंनी (पानीपत), महक कैरानवी (हैदराबाद) और सरिता जैन (दिल्ली) जैसे नामचीन हस्तियों ने समाज की विसंगतियों, प्रेम, और मानवीय संवेदनाओं पर आधारित अपनी ग़ज़लें और कविताएं पेश कीं।
चुनिंदा शेरों ने छुई रूह:
- “शीशे की क्या बिसात है पत्थर के सामने, चलती नहीं किसी की मुकद्दर के सामने” – शरफ नानपारवी
- “हम गरीबों पर गुजरती रात भी देखा करो, साहिबे आलम कभी फुटपाथ भी देखा करो” – बिलाल सहारनपुरी
- “मुझे खयाल वफा का अगर नहीं आता, मैं तेरे दर पे कभी लोट कर नहीं आता” – उस्मान उस्मानी
- “ये किसी के सगे नहीं होते, मुखबिरों से न दोस्ती करना” – जुनेद अख्तर
- “जिन्हें कश्ती से कुछ मतलब न मतलब है समंदर से, जियादातर उन्हीं हाथों में अब पतवार रहती है” – नवीन नीर
- “मेरे मुहल्ले की एक लड़की कल्लू ले गया, एक मुझ से भी काला था वही कल्लू ले गया” – मनु बदायूंनी
आयोजन टीम को श्रेय:
मुशायरे के मुख्य संयोजक रिजवान अंसारी के प्रयासों से यह आयोजन सफल रहा। उन्होंने बताया कि यह कार्यक्रम न केवल साहित्य को बढ़ावा देने, बल्कि मजदूर वर्ग के प्रति सम्मान व्यक्त करने का मंच भी था। जुनेद अख्तर के मार्गदर्शन में हुए इस मुशायरे ने सांस्कृतिक एकता और सामाजिक जागरूकता का संदेश दिया।
कार्यक्रम के अंत में सभी अतिथियों और कलाकारों का आभार व्यक्त किया गया। इस ऐतिहासिक मुशायरे ने न केवल साहित्यप्रेमियों को जोड़ा, बल्कि श्रमिकों के अधिकारों और उनके योगदान को रेखांकित करते हुए एक नई सामाजिक पहल की नींव रखी।
