
विद्युत निजीकरण के खिलाफ जंग: कर्मचारियों ने सांसद इकरा चौधरी को सौंपा ज्ञापन!
यूपी में बिजली निजीकरण पर आंदोलन: किसानों-गरीबों को महंगी पड़ेगी बिजली, आरक्षण भी होगा खत्म!
सांसद ने दिया आश्वासन: विद्युत विभाग के निजीकरण का मुद्दा शासन तक पहुंचाएंगे!
कैराना। विद्युत कर्मचारियों ने बिजली वितरण के निजीकरण के विरोध में गुरुवार को सांसद इकरा चौधरी को ज्ञापन सौंपकर सरकार के फैसले को वापस लेने की मांग की। विद्युत विभाग के एसडीओ अमित कुमार गुप्ता के नेतृत्व में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के प्रतिनिधियों ने चेतावनी दी कि निजीकरण से आम जनता से लेकर किसानों तक को गंभीर नुकसान होगा।
ज्ञापन के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार ने पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के अंतर्गत आने वाले 42 जिलों में बिजली वितरण का निजीकरण करने का निर्णय लिया है। कर्मचारियों का कहना है कि इससे:
- बिजली दरें बढ़ेंगी: निजी कंपनियां मुनाफे के लिए बिजली की कीमतों में भारी बढ़ोतरी करेंगी।
- किसानों को झटका: सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली की सुविधा समाप्त हो जाएगी, जिससे किसानों की लागत बढ़ेगी।
- आरक्षण खत्म: गरीब और पिछड़े वर्गों को मिलने वाले आरक्षण का लाभ निजी क्षेत्र में नहीं मिलेगा।
- नौकरियां जाएंगी: हज़ारों संविदाकर्मियों की नौकरियां खत्म होने का खतरा पैदा हो गया है।
सांसद इकरा चौधरी ने कर्मचारियों की चिंताओं को गंभीरता से लेते हुए उनके ज्ञापन को शासन तक पहुंचाने का भरोसा दिलाया। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री और ऊर्जा मंत्री से सीधा संवाद किया जाएगा। जनहित में उठाए गए इन सवालों का समाधान जरूरी है।
समिति के प्रतिनिधियों ने बताया कि निजीकरण से सरकारी विभागों का मकसद “लाभ कमाना” है, ना कि “जनसेवा”। उन्होंने केरल और दिल्ली जैसे राज्यों में निजीकरण के बाद बिजली दरों में हुई वृद्धि का उदाहरण देते हुए कहा कि यूपी में भी यही हाल होगा।
समिति ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया, तो राज्यव्यापी विरोध प्रदर्शन और हड़ताल की कार्रवाई शुरू की जाएगी। कर्मचारियों का कहना है कि वे निजीकरण के खिलाफ जनता को जागरूक करने के लिए अभियान भी चलाएंगे।
इस मुद्दे पर सरकार और कर्मचारियों के बीच टकराव बढ़ता नजर आ रहा है। जबकि सरकार का दावा है कि निजीकरण से बिजली वितरण की दक्षता बढ़ेगी, कर्मचारी इसे “जनविरोधी फैसला” बता रहे हैं। अब निगाहें सांसद द्वारा शासन को भेजे जाने वाले ज्ञापन और उसके परिणामों पर टिकी हैं।