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आतंकवाद के खिलाफ बुढ़ाना में उठी एकता की आवाज़: जमीयत उलमा-ए-हिंद ने पहलगाम हमले के विरोध में निकाला मौन मार्च!

निर्दोषों की हत्या शर्मनाक, आतंकियों को फांसी की मांग: बुढ़ाना में मौन मार्च के दौरान उलेमाओं का ऐलान!

आतंक का कोई मजहब नहीं: जमीयत उलमा-ए-हिंद के शांतिपूर्ण प्रदर्शन में हर वर्ग ने दिखाई एकता!

मुज़फ्फ़रनगर। बुढ़ाना: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों पर हुए कायराना आतंकी हमले के विरोध में बुढ़ाना कस्बे में जमीयत उलमा-ए-हिंद के तत्वावधान में मंगलवार को एक विशाल मौन मार्च आयोजित किया गया। इस मार्च का उद्देश्य आतंकवाद के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध दर्ज कराना और शहीद निर्दोष नागरिकों को श्रद्धांजलि देना था।

मौन मार्च छोटा बाजार से शुरू होकर मुख्य बाजार, कांधला रोड, नगर पंचायत कार्यालय और पीर शाह विलायत होते हुए स्थानीय मदरसे पर समाप्त हुआ। प्रतिभागियों ने “आतंकवाद मुर्दाबाद”, “हिंदुस्तान जिंदाबाद”, “आतंक का कोई मजहब नहीं” जैसे नारों वाली तख्तियां थाम रखी थीं। पूरे कार्यक्रम में अनुशासन और शांति बनाए रखी गई, जिसमें नारेबाजी से परहेज किया गया।

प्रमुख वक्ताओं के बयान:

  • मुफ्ती फरमान क़ासमी (नगर अध्यक्ष) ने कहा कि आतंकवाद मानवता का दुश्मन है। निर्दोषों की हत्या करने वालों को फांसी ही सजा मिलनी चाहिए।
  • मौलाना आसिफ कुरैशी ने जोर देकर कहा कि हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी एकजुट होकर आतंक के खिलाफ लड़ेंगे। भारत की एकता किसी साजिश से नहीं टूटेगी।
  • हाफिज राशिद कुरैशी (संयुक्त महासचिव) ने सरकार से दोषियों को जल्द पकड़ने और कड़ी सजा देने की मांग की।

मार्च में मुफ्ती असरार मज़ाहीरी, मौलाना खालिद क़ासमी, हाफिज अब्दुल गफ्फार, विनोद त्यागी (बार संघ अध्यक्ष), तौसीफ राही, राशिद मंसूरी सहित सैकड़ों नागरिक, व्यापारी और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए।

जमीयत का रुख:

जमीयत उलमा-ए-हिंद ने लगातार आतंकवाद की निंदा करते हुए राष्ट्रीय एकता और संविधान के प्रति वफादारी पर जोर दिया है। संगठन का इतिहास देश के विभाजन के विरोध और सेकुलर मूल्यों के समर्थन से जुड़ा है।

कस्बे के नागरिकों ने इस मार्च को “अमन की मिसाल” बताया। एक दुकानदार ने कहा कि ऐसे प्रयासों से यह संदेश जाता है कि आतंकवाद किसी धर्म या समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करता।

यह मौन मार्च न केवल पहलगाम हमले के पीड़ितों के प्रति संवेदना व्यक्त करता है, बल्कि सामाजिक सद्भाव और आतंक के खिलाफ सामूहिक इच्छाशक्ति को भी दर्शाता है। जमीयत के इस कदम ने साबित किया कि आतंकवाद के विरोध में समाज के सभी वर्ग एकजुट हैं।

 

 

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