
ग़ाज़ा में ₹5 वाले पारले-जी बिस्कुट की कीमत ₹2,300! पिता ने बेटी के लिए खरीदा, वायरल हुआ दर्दनाक वीडियो
बेटी की खुशी के लिए 24 यूरो में खरीदा पारले-जी” – ग़ाज़ा के पिता की पोस्ट ने दिखाई युद्ध की भयावहता!
ग़ाज़ा। 7 जून: भारत में महज ₹5 में मिलने वाला पारले-जी बिस्कुट आज गाजा के युद्धग्रस्त इलाकों में एक “लक्ज़री आइटम” बन चुका है। एक पिता ने अपनी छोटी बेटी के लिए इस बिस्कुट का पैकेट खरीदा, जिसकी कीमत ₹2,300 (24 यूरो) थी – यह भारतीय बाजार से करीब 500 गुना ज्यादा है। इस दर्दनाक वीडियो ने सोशल मीडिया पर तूफान ला दिया है और गाजा में बढ़ते खाद्य संकट की भयावह तस्वीर पेश की है।
मोहम्मद जवाद नाम के एक गाजा निवासी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक वीडियो शेयर किया, जिसमें उनकी बेटी रफीफ पारले-जी बिस्कुट खाते हुए दिख रही है।
उन्होंने बताया कि यह बिस्कुट पहले 1.5 यूरो (लगभग ₹147) में मिलता था, लेकिन अब इसकी कीमत बढ़कर 24 यूरो (लगभग ₹2,342-2,400) हो गई है।
जवाद ने लिखा कि “लंबे इंतजार के बाद आज मैंने रफीफ को उसका पसंदीदा बिस्कुट दिला दिया। कीमत बहुत ज्यादा थी, लेकिन मैं उसे मना नहीं कर पाया।”
क्यों बढ़ी इतनी कीमत?
युद्ध और नाकाबंदी: इजरायल-हमास युद्ध के बाद से गाजा में खाद्य आपूर्ति बुरी तरह प्रभावित हुई है। मार्च 2025 से ही इजरायल ने गाजा में मानवीय सहायता पर कड़ी पाबंदियां लगा दी हैं, जिससे बुनियादी सामानों की भारी कमी हो गई है।
कालाबाजारी का बोलबाला: अंतरराष्ट्रीय सहायता के तौर पर आने वाला खाना और दवाएं अक्सर हमास या स्थानीय माफिया द्वारा जब्त कर लिए जाते हैं और उन्हें ब्लैक मार्केट में बेहद ऊंचे दामों पर बेचा जाता है।
अन्य जरूरी सामानों के दाम:
1 किलो चीनी: ₹4,914
1 लीटर खाने का तेल: ₹4,177
1 कप कॉफी: ₹1,800 710
भारतीयों की प्रतिक्रिया:
कई भारतीय उपयोगकर्ताओं ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर को टैग करते हुए ग़ाज़ा में अधिक खाद्य सहायता भेजने की मांग की।
कुछ लोगों ने आरोप लगाया कि भारत द्वारा भेजी गई सहायता राशि हमास द्वारा लूट ली जाती है और गाजावासियों से ऊंचे दाम वसूले जाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र की चेतावनी:
यूएन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, गाजा में 5 लाख से ज्यादा लोग भुखमरी के कगार पर हैं और 57 बच्चों की मौत पहले ही कुपोषण से हो चुकी है।
गाजा में पारले-जी बिस्कुट की बढ़ी कीमत सिर्फ एक उदाहरण है, जो दिखाता है कि कैसे युद्ध और संकट आम लोगों की जिंदगी को नर्क बना देते हैं। जवाद जैसे मासूम परिवारों की कहानियां दुनिया के सामने एक सवाल खड़ा करती हैं – क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस मानवीय त्रासदी को रोकने के लिए और कुछ कर सकता है?