
सीज़फ़यार घोषणा पर सवाल: पाकिस्तान की तरफ़ सीज़फ़ायर की मांग को सार्वजनिक मंच पर साझा क्यों नहीं किया गया?
सेना और देश का सम्मान दांव पर? सरकार के फैसले पर उठे सियासी सवाल!
चाटूकार सरकार पर आरोप: क्या भारत ने अमेरिका के सामने झुककर सीज़फ़ायर की की घोषणा?
भारत और पाकिस्तान के बीच 10 मई को घोषित सीजफायर को लेकर राजनीतिक और सामरिक सवाल गहराते जा रहे हैं। सीजफायर की घोषणा के तुरंत बाद पाकिस्तान द्वारा इसका उल्लंघन करने के बाद सरकार के फैसले पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि आखिर सीजफायर की मांग को सार्वजनिक मंच पर साझा क्यों नहीं किया गया? क्या यह भारत की कूटनीतिक विफलता है या फिर सेना और देश के सम्मान को दांव पर लगाने वाला कदम?
घोषणा और अमेरिकी भूमिका:
10 मई को शाम 5 बजे भारत और पाकिस्तान ने संयुक्त रूप से सीजफायर की घोषणा की, जिसमें थल, जल और वायु सीमाओं पर सभी सैन्य गतिविधियाँ रोकने पर सहमति बनी।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्विटर पर इसकी घोषणा करते हुए अमेरिकी मध्यस्थता का श्रेय लिया, लेकिन भारत सरकार ने इसे “सीधी वार्ता” का परिणाम बताया।
पाकिस्तान का उल्लंघन:
घोषणा के महज 3 घंटे बाद पाकिस्तान ने एलओसी और अंतरराष्ट्रीय सीमा पर गोलीबारी शुरू कर दी, जिसे भारतीय सेना ने करारा जवाब दिया।
पाकिस्तान ने भारत पर ही सीजफायर तोड़ने का आरोप लगाते हुए अपने संयम का दावा किया, जबकि भारत ने इसकी पुष्टि से इनकार किया।
सार्वजनिक मंच पर चुप्पी के सवाल:
अब सवाल उठता है कि सीजफायर की मांग को संसद या जनता के सामने रखने के बजाय गोपनीय वार्ता का रास्ता क्यों चुना गया? क्या यह सरकार की पारदर्शिता में कमी को दर्शाता है? क्या सरकार को नहीं चाहिए था कि जनता को विश्वास में लेना चाहिए।
सेना की स्वायत्तता पर चिंता:
केंद्र सरकार ने सेना को “फ्री हैंड” देने का फैसला किया, जिसे कुछ विश्लेषकों ने “जवाबी कार्रवाई की अनुमति” बताया, लेकिन साथ ही यह सवाल भी उठा कि क्या यह नीति देश की छवि को नुकसान पहुँचा सकती है? जनता को लगता है कि सीजफायर की घोषणा अमेरिकी दबाव में की गई? क्या यह मोदी सरकार की कूटनीतिक असफलता नहीं है? विपक्षी खेमा सरकार पर अमेरिका का “चाटूकार” होने का आरोप लगा रहे हैं कि “देश की सुरक्षा को राजनीतिक फायदे के लिए नहीं बेचा जाना चाहिए।
विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि सीजफायर समझौता राष्ट्रीय हित में था और पाकिस्तान के उल्लंघन के बाद सेना को पूरा समर्थन दिया गया है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दावा किया कि “भारत की प्रतिष्ठा बरकरार है और किसी भी कीमत पर शांति बनाए रखने का प्रयास जारी है।”