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विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर चिंतन: भारत की स्थिति चिंताजनक! लोकतंत्र की रीढ़ कमज़ोर?

विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2025: 180 देशों में भारत 151वें पायदान पर, चिंता बढ़ी!

मीडिया पर राजनीतिक दबावों का साया: पत्रकारिता की आज़ादी पर संकट!

विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के मौके पर जारी वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स (WPFI) 2025 की रिपोर्ट ने भारत के लिए चिंताजनक स्थिति उजागर की है। इस सूची में 180 देशों में भारत 151वें स्थान पर है, जो पत्रकारिता की स्वतंत्रता और मीडिया के बढ़ते संकट को रेखांकित करता है। पिछले कुछ वर्षों में भारत की रैंकिंग में लगातार गिरावट देखी गई है, जो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर गहराते खतरे का संकेत है।

रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय मीडिया का स्वामित्व अब चंद राजनीतिक रूप से प्रभावशाली समूहों और कॉर्पोरेट घरानों के हाथों में सिमट गया है। इसके कारण समाचारों की निष्पक्षता, विविधता और खोजपूर्ण पत्रकारिता पर गंभीर असर पड़ा है। विशेषज्ञों का मानना है कि मीडिया संस्थानों पर अप्रत्यक्ष दबाव, विज्ञापनों की रोकथाम, और “पेड न्यूज़” की संस्कृति ने पत्रकारों की आवाज़ दबाने का काम किया है।

क्या कहते हैं आंकड़े?

  • 2025 WPFI में भारत के पड़ोसी देशों में नेपाल 72वें, श्रीलंका 135वें और पाकिस्तान 145वें स्थान पर हैं।
  • यूरोपीय देश नॉर्वे, डेनमार्क और स्वीडन लगातार शीर्ष पर बने हुए हैं।
  • भारत में 2020 के बाद से पत्रकारों के खिलाफ हिंसा, गिरफ्तारी और ऑनलाइन उत्पीड़न के मामले 60% बढ़े हैं।

मीडिया विश्लेषकों का कहना है कि जब मीडिया संस्थान सत्ता के नज़दीक होंगे, तो सच्चाई दब जाएगी। भारत में अभिव्यक्ति की आज़ादी संवैधानिक अधिकार है, लेकिन पत्रकारों को काम करने में डर और दबाव का सामना करना पड़ रहा है। अंतरराष्ट्रीय संगठन “रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स” ने भी भारत में मीडिया की स्वायत्तता को लेकर चेतावनी जारी की है।

केंद्र सरकार ने इस रिपोर्ट को “पक्षपातपूर्ण” बताते हुए खारिज कर दिया है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि भारत में प्रेस पूरी तरह स्वतंत्र है। यह रैंकिंग पश्चिमी एजेंडे से प्रेरित है। हालांकि, पत्रकार संगठनों ने इस बयान पर सवाल उठाए हैं। “इंडियन जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन” के अध्यक्ष अमित कुमार ने कहा कि आज देश के 60% से अधिक मीडिया हाउस उन व्यक्तियों के नियंत्रण में हैं, जो सीधे राजनीति से जुड़े हैं। यह लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।

मीडिया विशेषज्ञों का मानना है कि स्वतंत्र पत्रकारिता को बचाने के लिए मीडिया स्वामित्व पर नियमों को सख्त करना, पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करना और सरकारी विज्ञापनों के पारदर्शी वितरण जैसे कदम ज़रूरी हैं। जनता की भूमिका भी अहम है — सच्ची खबरों का समर्थन करके और निष्पक्ष मीडिया को बढ़ावा देकर ही लोकतंत्र मज़बूत हो सकता है।

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