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गाज़ा पर चुप रहकर यूक्रेन के मुद्दे पर दुनिया हमें नहीं समझेगी: मैक्रोन ने यूरोपीय नेताओं से की अपील!

ग़ाज़ा को यूक्रेन जैसा समर्थन दें यूरोप: फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रोन का अल्बानिया में बयान!

यूरोप की दोहरी नीति पर सवाल! मैक्रोन बोले- गाजा पर चुप्पी यूक्रेन समर्थन को खोखला करती है!

अल्बानिया। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने यूरोपीय नेताओं से गाजा संकट पर एकजुट होकर समर्थन जताने का आह्वान किया है। अल्बानिया में आयोजित एक यूरोपीय सम्मेलन में बोलते हुए मैक्रों ने कहा कि जब हम गाजा के मुद्दे पर चुप रहते हैं, तो दुनिया यूक्रेन पर हमारी बात को गंभीरता से नहीं लेती। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि यूरोप को मानवीय संकटों में “दोहरे मानदंड” से बचना चाहिए और गाजा में फिलिस्तीनी नागरिकों के हितों को यूक्रेन के समर्थन जितनी ही प्राथमिकता देनी चाहिए।

मैक्रोन का मुख्य तर्क!

मैक्रों ने कहा कि यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के खिलाफ यूरोप की एकजुटता सराहनीय है, लेकिन गाजा में इज़राइल-हमास युद्ध के दौरान नागरिकों की मौतों और मानवाधिकार उल्लंघनों पर चुप्पी यूरोप की विश्वसनीयता को नुकसान पहुँचा रही है। उन्होंने कहा कि “हम यूक्रेन में शांति की बात करते हैं, तो गाजा में भी बंदूकों की आवाज़ को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते।”

गाजा में पिछले कई महीनों से इज़राइली सेना और हमास के बीच संघर्ष जारी है, जिसमें हज़ारों फिलिस्तीनी नागरिक मारे गए हैं। यूरोपीय देशों ने इज़राइल के “आत्मरक्षा के अधिकार” का समर्थन किया है, लेकिन मानवीय सहायता और युद्धविराम को लेकर उनकी आलोचना भी हो रही है। मैक्रों का यह बयान यूरोपीय संघ के भीतर फिलिस्तीन मुद्दे पर बढ़ते मतभेदों के बीच आया है।

मैक्रोंन के बयान को कुछ यूरोपीय देशों ने सहमति जताई है, जबकि कुछ ने इसे “यूक्रेन समर्थन से भटकाव” बताया है। जर्मनी और नीदरलैंड्स जैसे देश इज़राइल के प्रति मजबूत समर्थन के पक्षधर हैं, जबकि आयरलैंड और स्पेन ने गाजा में युद्ध अपराधों की जाँच की माँग की है।

मैक्रोंन ने सुझाव दिया कि यूरोप को गाजा संकट के समाधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की भूमिका को मजबूत करने और दोनों पक्षों के बीच वार्ता को बढ़ावा देने पर ज़ोर दिया।

मैक्रोंन की यह टिप्पणी यूरोपीय नीतियों में मानवाधिकारों और भू-राजनीतिक हितों के बीच संतुलन बनाने की ज़रूरत को रेखांकित करती है। गाजा और यूक्रेन दोनों मोर्चों पर यूरोप की भूमिका अब वैश्विक नैतिक नेतृत्व की परीक्षा बन गई है।

 

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