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कृषि एवं समाज सेवा के पुरोधा: पद्मश्री बाबू रफीक की यादों से महक रहा कांधला

2.5 किलो के आम से रचा इतिहास, पद्मश्री बाबू रफीक की विरासत को संजोए हुए हैं कांधलावासी

मृत्यु के बाद मिला राज्यपाल पद का प्रस्ताव, पर बाबू रफीक की अमर गाथा आज भी प्रेरणा है

कांधला (शामली)। पद्मश्री से सम्मानित स्वर्गीय बाबू रफीक आज भी क्षेत्र के लोगों के दिलों में जीवित हैं। कृषि और समाज सेवा के क्षेत्र में उनके योगदान ने न केवल कांधला बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश को गौरवान्वित किया। 2 अप्रैल 1977 को भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा था, जो उनके अथक परिश्रम और समर्पण का प्रमाण है।

जमींदार परिवार में जन्म, लाहौर से लाए कृषि की नई राह

बाबू रफीक का जन्म जनवरी 1905 में कांधला के एक जमींदार परिवार में हुआ। लाहौर विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद पिता मोहम्मद सिद्दीक के निधन पर वे कांधला लौट आए। कृषि के प्रति उनके जुनून ने इलाके की तस्वीर बदल दी। वे लाहौर से बरसीम और बासमती के उन्नत बीज लाए, जिससे इस क्षेत्र में फसलों की पैदावार बढ़ी। उन्होंने कृषि शोध को बढ़ावा दिया और एक बार 2.5 किलो वजन का आम उगाकर सभी को चौंका दिया। यह घटना उस दौर में चर्चा का केंद्र बनी रही।

इंदिरा गांधी भी आईं थीं कांधला, हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक

बाबू रफीक की ख्याति देश के कोने-कोने तक पहुँची। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनसे मिलने कांधला का दौरा किया। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता को मजबूत करने में भी अहम भूमिका निभाई। उनके पौत्र जुनैद मुखिया ने बताया कि दादा सदैव कहते थे कि समाज सेवा और सद्भाव ही सच्ची पहचान है। आज भी हम उनके सिद्धांतों पर चल रहे हैं।

मृत्यु के तीन दिन बाद मिला राज्यपाल बनने का प्रस्ताव

12 मार्च 1984 को बाबू रफीक का निधन हो गया, लेकिन उनकी योग्यता का सम्मान इससे भी झलकता है कि तीन दिन बाद भारत सरकार ने उन्हें हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त करने का पत्र भेजा। हालाँकि, यह सम्मान वे स्वीकार नहीं कर सके, पर उनकी विरासत कांधला में आज भी जीवित है।

पौत्र जुनैद संभाल रहे हैं बदलाव की बागडोर

आज बाबू रफीक के पौत्र जुनैद मुखिया उनकी सामाजिक और कृषि संबंधी परंपराओं को आगे बढ़ा रहे हैं। क्षेत्रवासियों का कहना है कि बाबू साहब की मिसालें उन्हें हमेशा प्रेरित करती हैं। कांधला की मिट्टी आज भी उस महान शख्सियत की गाथा गाती है, जिसने समर्पण और सेवा से इतिहास रच दिया।

बाबू रफीक का जीवन सादगी, समर्पण और सामाजिक सद्भाव का प्रतीक है। पद्मश्री से लेकर राज्यपाल पद के प्रस्ताव तक, उनकी जीवनयात्रा युवाओं के लिए एक मार्गदर्शक है। कांधलावासियों के लिए वे केवल एक पुरस्कार विजेता नहीं, बल्कि “बाबू साहब” हैं, जिनकी विरासत हर फसल और हर मुस्कान में दिखती है।

 

 

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