मासूम जिया का टूटा गुलक बाढ़ पीड़ितों के नाम

कांधला की नन्हीं बेटी ने अपने सपनों की पूँजी कुर्बान की, अमीरों की चुप्पी पर उठे सवाल

कांधला। कहते हैं इंसानियत का पैमाना दौलत नहीं, बल्कि दिल होता है। इस बात को मोहल्ला मौलानान की मासूम बच्ची जिया ने सच साबित कर दिखाया।जिया, नौशाद की बेटी, जिसकी उम्र इतनी भी नहीं कि वह दुनिया की कठिनाइयों को समझ सके… लेकिन इस नन्हीं बच्ची ने वो कर दिखाया जो बड़े-बड़े लोग करने से कतराते हैं।

सपनों से भरा गुलक

उस छोटे-से गुलक में उसकी तमन्नाएँ कैद थीं—कभी गुड़िया खरीदने का ख्वाब, कभी चॉकलेट का शौक, और कभी नए कपड़ों की उम्मीद।

मगर जब पंजाब की बाढ़ और वहाँ रोते-बिलखते बच्चों की तस्वीरें जिया ने देखीं, तो उसने बिना देर किए अपने गुलक को तोड़ दिया।

उसमें रखे 50 रुपए उसने अपने अब्बू से कहा

“अब्बू! ये मेरे पैसे मे उनके लिए देने जा रही हु, शायद किसी के काम आ जाए

उस मासूम आवाज़ ने नौशाद को भी रुला दिया। उनकी आँखें भर आईं और दिल काँप उठा—

“जिस उम्र में बच्चे गुड्डे-गुड़ियों के लिए रोते हैं, उस उम्र में मेरी बेटी ने इंसानियत का सबक पढ़ लिया।” पंजाब की बाढ़ ने सैकड़ों घर उजाड़ दिए, बच्चों से उनका बचपन छीन लिया, और परिवारों को सड़कों पर ला खड़ा किया।

ऐसे समय में जब हर मदद की दरकार है, वहाँ जिया का छोटा-सा त्याग राहत से कहीं बढ़कर है। यह त्याग है इंसानियत का, मोहब्बत का और समाज के लिए एक सख़्त पैग़ाम का। आज जिया का टूटा गुलक पूरे कस्बे के अमीरों के लिए एक आईना है। जहाँ एक नन्हीं बच्ची अपनी चॉकलेट और खिलौनों की ख्वाहिशें कुर्बान कर सकती है, वहाँ कस्बे के वो अमीर क्यों खामोश हैं जिनके पास दौलत के खज़ाने हैं? जो आलीशान कोठियों में रहते हैं, बड़ी-बड़ी गाड़ियों में घूमते हैं, और लाखों रुपयों की शादियों पर खर्च कर देते हैं… वे बाढ़ पीड़ितों के लिए आगे क्यों नहीं आते?

क्या अमीरी सिर्फ़ दिखावे और ऐशो-आराम तक ही सीमित रह गई है? क्या इंसानियत सिर्फ़ गरीबों और मासूम बच्चों पर ही छोड़ दी गई है?

जज़्बे की ताक़त

जिया के 50 रुपए शायद किसी भूखे पेट को भर न सकें, लेकिन उसका जज़्बा लाखों दिलों को झकझोर गया है। उसने दिखा दिया कि मदद करने के लिए जेब भरी हो, ये ज़रूरी नहीं। मदद के लिए तो बस एक दर्दमंद दिल चाहिए। आज इस बच्ची की मासूमियत और त्याग हर इंसान से सवाल कर रही है अगर जिया अपने खिलौनों और सपनों को भुला सकती है, तो हम बड़े लोग क्यों नहीं अपने शौकों और फ़िज़ूलखर्चियों से थोड़ा त्याग कर सकते? यह सिर्फ़ ख़बर नहीं, बल्कि एक आईना है समाज के लिए। एक मासूम बच्ची ने हमें दिखा दिया कि इंसानियत की दौलत हर सोने-चाँदी से बड़ी है।

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