IMG-20250709-WA0009

 

कांधला — जहाँ एक ओर आधुनिकता की दौड़ में लोग तहज़ीब और अदब को भूलते जा रहे हैं, वहीं कांधला कस्बे की गलियों में आज भी अल्फ़ाज़ की रूहानियत ज़िंदा है… और इसका सबसे खूबसूरत सबूत हैं — डॉक्टर जुनेद अख़्तर, जिनका नाम सुनते ही ज़हन में शायरी की वो नर्म पर छू जाने वाली खनक गूंज उठती है।

डॉक्टर जुनेद अख़्तर सिर्फ एक शायर नहीं, बल्कि कांधला की अदबी पहचान हैं। मोहल्ला मौलाना के इस फनकार ने शायरी को महज़ लफ़्ज़ों की बाज़ीगरी नहीं, बल्कि दिल की सच्ची आवाज़ बना दिया है। वो जब मंच पर आते हैं, तो न सिर्फ श्रोता बल्कि खामोश दीवारें भी उनके शेर सुनती नज़र आती हैं।

उनके कुछ चर्चित शेर, जो लोगों की ज़बान पर चढ़ चुके हैं:

“कुछ भी नहीं बिसात मगर तोलने लगे।

उड़ने का तजरिबा नहीं, पर खोलने लगे।

हम चार दिन के वास्ते ख़ामोश क्या हुए,

गूंगे हमारे शहर के सब बोलने लगे।”

इस शेर ने जैसे कांधला की उस सच्चाई को उकेर दिया है, जहाँ चुप्पी को कमज़ोरी समझ कर बोलने वाले बढ़ते जा रहे हैं।

 

और ये शेर देखिए, जैसे ज़माना की साजिशों पर एक सीधा तमाचा:

“पहले बलंदियों से गुज़ारा गया हमें।

फिर ला के पस्तियों में उतारा गया हमें।

लाशें मिलीं, न शोर मचा और न ख़ूं दिखा।

किस दर्जा एहतियात से मारा गया हमें।”

क्या बात है जनाब! लगता है जैसे ये शेर किसी सियासी साज़िश या अदृश्य ज़ुल्म की कहानी बयाँ कर रहा हो।

शहर की गलियों से उड़ती चर्चा…

कांधला के चाय की दुकानों से लेकर सोशल मीडिया के स्टेटस तक, आज जुनेद अख़्तर का नाम गूंज रहा है। उनके चाहने वाले कहते हैं –

जुनेद साहब शेर नहीं कहते, जैसे दिल में उतरते हुए नज़्म के नक़्श छोड़ जाते हैं।

 

और ये चुटीली मगर गहरी मार करने वाला शेर देखिए:

“मुंह से निकली पराई होती है।

जो भी बोलो, वो सोच कर बोलो।

हैं चुग़लख़ोर दोस्तों में बहुत।

होशियारी से अपने लब खोलो।”

जैसे किसी दिलजले की हिदायत हो समाज को, दोस्तों की शक्ल में दुश्मनों को पहचानने की।

 

और अब… सबसे चर्चित और चुभता हुआ शेर:

“आस्तीनों से कोई सांप तो बाहर आए।

हमने एक नेवला मुट्ठी में छुपा रक्खा है।”

वाह जनाब! क्या अंदाज़ है! जैसे कह रहे हों

“ख़तरों से खेलने की आदत है हमें… ज़हर के जवाब में ज़हर ही रखते हैं!”

 

कांधला को गर्व है अपने इस शायर पर

जहाँ लोग शोर से पहचान बनाते हैं, वहीं डॉक्टर जुनेद अख़्तर ख़ामोशी में अल्फ़ाज़ की चिंगारी जलाते हैं। उनके शेर न सिर्फ सुने जाते हैं, बल्कि महसूस किए जाते हैं।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!