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झूठे गैंगरेप केस में सख्त सजा: रेखा देवी को साढ़े सात साल जेल, 2.10 लाख जुर्माना!

लखनऊ: एससी/एसटी एक्ट की विशेष अदालत ने झूठे सामूहिक दुष्कर्म का मामला दर्ज कराकर निर्दोष लोगों को फंसाने वाली एक महिला को कठोर सजा सुनाई है। विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी ने रेखा देवी को साढ़े सात साल के कठोर कारावास और दो लाख दस हजार रुपये के जुर्माने की सजा दी है।

रेखा देवी ने 29 जून 2021 को थाना जैदपुर में राजेश और भूपेंद्र के खिलाफ झूठा गैंगरेप, जान-माल की धमकी और एससी/एसटी एक्ट का मामला दर्ज कराया था।

मामले की जांच लखनऊ के बीकेटी थाने को सौंपी गई। क्षेत्राधिकारी (सीओ) ने पाया कि रेखा ने “दुश्मनी निकालने” और सरकारी मुआवजे के लालच में झूठा केस दर्ज कराया था। आरोपियों को क्लीन चिट मिली और रेखा के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की गई। कोर्ट में सुनवाई के दौरान आरोप साबित हो गए और रेखा देवी को दोषी ठहराया गया।

रेखा देवी को साढ़े सात वर्ष (सात वर्ष छह माह) का कठोर कारावास और दो लाख दस हजार रुपये (₹2,10,000) के जुर्माना की सज़ा सुनाई गई।

जुर्माने की आधी राशि गलत तरीके से जेल भेजे गए आरोपितों को दी जाएगी। राजेश को ₹1.05 लाख मिलेंगे, जबकि सुनवाई के दौरान मृत भूपेंद्र के उत्तराधिकारियों को शेष राशि दी जाएगी।

राहत राशि प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव का आदेश!

इस मामले की सुनवाई के दौरान एक महत्वपूर्ण मुद्दा सामने आया कि दुष्कर्म की रिपोर्ट दर्ज होते ही पीड़िता को तुरंत एक निश्चित सहायता राशि (राहत राशि) मिल जाती है। इस प्रावधान के दुरुपयोग की आशंका को देखते हुए, अदालत ने एक महत्वपूर्ण निर्देश जारी किया है:

विशेष न्यायाधीश त्रिपाठी ने लखनऊ के जिलाधिकारी (डीएम) को आदेश दिया है कि भविष्य में, किसी भी दुष्कर्म मामले में पीड़िता को राहत राशि तभी दी जाए जब पुलिस ने आरोपित के खिलाफ अदालत में चार्जशीट (अभियोग पत्र) दायर कर दिया हो।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि केवल प्राथमिकी दर्ज (एफआईआर दर्ज) होने पर ही पीड़िता को कोई सहायता राशि नहीं दी जानी चाहिए। इसका उद्देश्य झूठे या दुरुपयोग वाले मामलों में तुरंत राशि बांटे जाने की संभावना को रोकना है।

यह फैसला कई मायनों में महत्वपूर्ण है:

  • झूठी शिकायतों पर अंकुश: यह झूठे दुष्कर्म और एससी/एसटी एक्ट के मामले दर्ज कराने की प्रवृत्ति के खिलाफ एक सख्त संदेश है।
  • न्यायिक सजगता: अदालत ने कानूनी प्रक्रियाओं के दुरुपयोग को गंभीरता से लिया और दोषी को कड़ी सजा दी।
  • प्रक्रियात्मक सुधार: राहत राशि के भुगतान को चार्जशीट दाखिल होने से जोड़कर, अदालत ने सहायता प्राप्त करने की प्रक्रिया में एक जांच की अतिरिक्त परत जोड़ी है, ताकि संदिग्ध मामलों में दुरुपयोग रोका जा सके। हालांकि, इस बात पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि यह आदेश असली पीड़िताओं को समय पर सहायता मिलने में अनावश्यक बाधा न बने।
  • निर्दोषों की सुरक्षा: फैसले से निर्दोष लोगों को झूठे मुकदमों से बचाने का प्रयास हुआ है।

यह फैसला कानून के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने की दिशा में महत्वपूर्ण है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि निर्दोषों को बचाने के लिए मुआवजा प्रक्रिया में सख्ती जरूरी है, ताकि एससी/एसटी एक्ट और दुष्कर्म कानूनों का गलत इस्तेमाल रोका जा सके। साथ ही, रेखा द्वारा प्राप्त किसी भी राहत राशि को वापस लेने का भी आदेश दिया गया है।

 

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