
413 करोड़ के चेरलापल्ली रेलवे स्टेशन की हालत: मोदी के उद्घाटन के 4 महीने बाद ही पहली बारिश में छत से टपकने लगा पानी!
निर्माण गुणवत्ता पर सवाल: हैदराबाद का ‘विश्वस्तरीय’ स्टेशन पहली आंधी में ही ढह गया!
PM मोदी के उद्घाटन वाले स्टेशनों का दुर्भाग्य: क्यों बारिश में ही खुल जाती है पोल?
हैदराबाद: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा महज चार महीने पहले उद्घाटन किए गए हैदराबाद के चेरलापल्ली रेलवे स्टेशन की छत पहली ही बारिश में टपकने लगी, जिससे निर्माण कार्य की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। 413 करोड़ रुपये की लागत से बने इस स्टेशन का निर्माण चार साल में पूरा हुआ था और इसे “विश्वस्तरीय सुविधाओं” से लैस बताया गया था, लेकिन पहली ही मौसमी आंधी में इसकी छत के हिस्से ढह गए और वेटिंग एरिया से पानी रिसने लगा।
शनिवार को हैदराबाद में हुई तेज आंधी और बारिश के दौरान स्टेशन की छत की रेलिंग और दक्षिणी मुख्य द्वार की छत ध्वस्त हो गई।
इससे पहले भी यहां वेटिंग एरिया में पानी रिसने की शिकायतें आई थीं, जिस पर रेलवे ने ठेकेदार को नोटिस भी जारी किया था।
घटना के बाद दक्षिण मध्य रेलवे के महाप्रबंधक अरुण कुमार जैन ने स्टेशन का निरीक्षण किया और मरम्मत के आदेश दिए, साथ ही अन्य स्टेशनों की गुणवत्ता जांचने का निर्देश दिया।
स्टेशन की विशेषताएं और विवाद!
इस स्टेशन को हैदराबाद और सिकंदराबाद स्टेशनों पर भीड़ कम करने के लिए बनाया गया था।
इसमें 6 एस्केलेटर, 7 लिफ्ट, प्रीमियम लाउंज और अलग-अलग वेटिंग एरिया जैसी हवाई अड्डे जैसी सुविधाएं दी गई थीं।
लेकिन, उद्घाटन के कुछ ही महीनों बाद छत गिरने से जनता और विपक्ष ने निर्माण में गड़बड़ी का आरोप लगाया है।
क्यों हो रही है ऐसी घटनाएं?
यह पहली बार नहीं है जब प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उद्घाटन किए गए किसी प्रोजेक्ट की गुणवत्ता पर सवाल उठे हैं। पिछले कुछ वर्षों में कई रेलवे स्टेशनों और इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के उद्घाटन के बाद उनमें दोष पाए गए हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि:
जल्दबाजी में उद्घाटन: कई बार राजनीतिक दबाव में प्रोजेक्ट्स को पूरा होने से पहले ही उद्घाटन कर दिया जाता है।
ठेकेदारों की लापरवाही: निर्माण कार्य में कम गुणवत्ता वाली सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है।
निगरानी का अभाव: रेलवे और सरकारी एजेंसियां निर्माण कार्य की ठीक से जांच नहीं करतीं।
चेरलापल्ली रेलवे स्टेशन की यह घटना एक बार फिर सरकारी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में गुणवत्ता की कमी को उजागर करती है। अब सवाल यह है कि क्या रेलवे इस मामले में जिम्मेदारों पर कार्रवाई करेगा या फिर ऐसी घटनाएं होती रहेंगी?