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एक युग का अंत: निष्पक्ष पत्रकारिता की मिसाल निधि कुलपति ने एनडीटीवी को कहा अलविदा!

23 साल के शानदार करियर के बाद निधि कुलपति रिटायर, चीख-चिल्लाहट से दूर अपनी शालीन शैली से बनाई पहचान!

साड़ी और संयम की प्रतीक निधि कुलपति ने छोड़ा एनडीटीवी, पत्रकारिता में छोड़ी एक अमिट छाप!

एनडीटीवी इंडिया की वरिष्ठ पत्रकार और प्रख्यात न्यूज़ एंकर निधि कुलपति ने 22 मई 2025 को NDTV में अपने 23 वर्षों के लंबे और सफल करियर के बाद चैनल से विदाई ले ली। उनका यह कदम न केवल एक पत्रकार का रिटायरमेंट है, बल्कि भारतीय टेलीविजन पत्रकारिता के एक ऐसे युग का समापन है, जहाँ शालीनता, निष्पक्षता और गंभीरता को सर्वोच्च स्थान दिया जाता था।

एक युग की समाप्ति!

निधि कुलपति ने 2003 में एनडीटीवी से जुड़कर अपने करियर में नई ऊँचाइयाँ छुईं। उनकी संयमित आवाज़, स्पष्ट प्रस्तुति और दर्शकों के प्रति ईमानदार रवैया उन्हें भारतीय मीडिया में एक अलग पहचान दिलाता रहा। आज के दौर में, जहाँ न्यूज़ चैनल अक्सर चीख-चिल्लाहट और सनसनीखेज शैली को प्राथमिकता देते हैं, निधि कुलपति ने हमेशा शांत, गंभीर और तथ्यात्मक पत्रकारिता को बरकरार रखा।

पारंपरिकता और आधुनिकता का संगम!

उन्होंने अपने पूरे करियर में साड़ी पहनने को प्राथमिकता दी, जो उनकी भारतीय संस्कृति के प्रति निष्ठा को दर्शाता था। यह एक सांस्कृतिक वक्तव्य था, जो बताता था कि आधुनिकता और परंपरा एक-दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि पूरक हो सकते हैं।

निष्पक्ष पत्रकारिता का प्रतीक!

एक ऐसे दौर में जब मीडिया में एकपक्षीय रिपोर्टिंग बढ़ रही है, निधि कुलपति ने आखिरी दिन तक निष्पक्षता और सत्यनिष्ठा का दामन थामे रखा। उनके सहकर्मियों ने उन्हें “ख़ामोशी की आवाज़” कहा, जो तीन दशकों तक गूँजती रही।

सहकर्मियों और प्रशंसकों की भावभीनी विदाई!

एनडीटीवी और अन्य मीडिया संस्थानों से जुड़े पत्रकारों ने उनके योगदान को याद किया। संजय किशोर जैसे वरिष्ठ पत्रकारों ने कहा कि निधि कुलपति ने पत्रकारिता को एक “ज़िम्मेदारी” समझा, न कि महज एक “परफॉर्मेंस”। सोशल मीडिया पर भी उनके प्रशंसकों ने उनके लिए भावपूर्ण संदेश साझा किए।

निधि कुलपति की विदाई केवल एक एंकर का चैनल छोड़ना नहीं है, बल्कि भारतीय टीवी पत्रकारिता के एक शांत, सौम्य और गरिमामय युग का अंत है। उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मिसाल बनी रहेगी कि पत्रकारिता का मूल उद्देश्य सत्य और निष्पक्षता होना चाहिए।

“निधि कुलपति जैसा होना मुश्किल है, लेकिन उन्हें याद रखना ज़रूरी है — ताकि जब अगली पीढ़ी पत्रकारिता को केवल टीआरपी का खेल मानने लगे, तो निधि जैसी आवाज़ें एक संदर्भ की तरह मौजूद रहें।”

 

 

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