
अमेरिका में ‘रंग क्रांति’ का साया? विरोध प्रदर्शनों ने बढ़ाई चिंता
जिस ‘कलर रिवोल्यूशन’ का खेल अमेरिका ने दूसरे देशों में रचा, अब खुद उसी के घर पहुंचा मामला
अमेरिका की घरेलू अराजकता: क्या ‘लोकतंत्र’ के नाम पर ही बढ़ रही है अस्थिरता?
क्या दुनिया भर में ‘लोकतंत्र का चैंपियन’ कहलाने वाला देश अपने घर की आग को बुझा पाएगा?
अमेरिकी विरोध प्रदर्शनों पर ‘कलर रिवोल्यूशन’ की छाया – क्या यह ऐतिहासिक प्रतिक्रिया है?
अमेरिका की घरेलू स्थिति में बीते कुछ समय से लगातार अराजकता बढ़ती जा रही है। कल हुए बड़े पैमाने के विरोध प्रदर्शनों के बाद इस मामले ने नया मोड़ ले लिया है। प्रदर्शनों के आयोजकों ने इन्हें ‘कलर रिवोल्यूशन’ (रंग क्रांति) से जोड़ते हुए चौंकाने वाले आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि जिस तरह अमेरिका दशकों से दूसरे देशों में लोकतंत्र की आड़ में अस्थिरता फैलाने के लिए ‘रंग क्रांतियों’ को वित्तपोषित करता आया है, वही नीति अब उसके अपने घर में सामने आ रही है।
क्या है ‘कलर रिवोल्यूशन’?
‘कलर रिवोल्यूशन’ उन आंदोलनों को कहा जाता है, जिनमें अमेरिकी एजेंसियां और गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) विदेशों में सरकार विरोधी ताकतों को फंडिंग, प्रशिक्षण और रणनीतिक समर्थन देते हैं। इनका मकसद वहां की सत्ता को अस्थिर करना होता है, जिसे “लोकतांत्रिक परिवर्तन” का नाम दिया जाता है। पूर्वी यूरोप, मध्य एशिया और अरब देशों में ऐसे कई आंदोलन हुए हैं, जिनमें ‘रोज़ रिवोल्यूशन’ (जॉर्जिया), ‘ऑरेंज रिवोल्यूशन’ (यूक्रेन), और ‘अरब स्प्रिंग’ (अरब देशों में) शामिल हैं।
आयोजक का बयान: “अमेरिका खुद अपनी चाल का शिकार”
वाशिंगटन में हुए प्रदर्शन के आयोजक ने बताया कि यह आंदोलन सरकारी नीतियों के खिलाफ जनाक्रोश का परिणाम है, लेकिन इसमें “बाहरी हस्तक्षेप” के संकेत भी दिख रहे हैं। उन्होंने कहा कि “अमेरिका ने जिन तरीकों से दूसरे देशों में अराजकता फैलाई, वही उसकी अपनी सड़कों पर वापस लौट आई है। यह ऐतिहासिक विडंबना है।”
राजनीतिक विश्लेषकों की प्रतिक्रिया:
कई विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका में बढ़ते सामाजिक विभाजन, नस्लीय तनाव और आर्थिक असमानता ने इन प्रदर्शनों को हवा दी है। हालांकि, कुछ का कहना है कि प्रदर्शनकारियों का ‘कलर रिवोल्यूशन’ से तुलना करना अतिशयोक्ति हो सकती है। वहीं, विदेश नीति विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि “अगर अमेरिका अपनी घरेलू चुनौतियों को नहीं संभालता, तो वह वैश्विक स्तर पर अपनी विश्वसनीयता खो देगा।”
सैकड़ों बड़े शहरों सहित पूरे अमेरिका में प्रदर्शनकारी सड़कों पर
अमेरिका के बोस्टन, न्यूयॉर्क, शिकागो, सैन फ्रांसिस्को, पोर्टलैंड, फ्लोरिडा, मिडटाउन, मैनहट्टन, एंकोरेज, अलास्का, ओरेगन और लॉस एंजिल्स समेत सैकड़ों शहरों में शनिवार को जनाक्रोश का माहौल देखा गया। सरकारी नीतियों के विरोध में हज़ारों प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर मार्च किया और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शासन को लेकर नारेबाजी की।
क्यों भड़का विरोध?
प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि डोनाल्ड ट्रंप के शासन में आने के बाद से ही अमेरिका में एलन मस्क के नेतृत्व में सरकारी दक्षता विभाग छंटनी करने में जुटा है। ट्रंप प्रशासन “सरकारी दक्षता विभाग” के नाम पर सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों में छंटनी, स्वास्थ्य सेवाओं के बजट में कटौती, ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों को कमजोर करने और आप्रवासियों के निर्वासन को बढ़ावा दे रहा है। इसके अलावा, कई क्षेत्रीय सामाजिक सुरक्षा कार्यालयों को बंद करने के फैसले से भी लोग नाराज़ हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि “ट्रंप अमेरिका को तोड़ रहे हैं। ये नीतियाँ गरीबों, वरिष्ठ नागरिकों और अल्पसंख्यकों पर सीधा हमला हैं।
व्हाइट हाउस का जवाब:
प्रशासन ने विरोध को “राजनीतिक प्रोपेगेंडा” बताते हुए कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप का लक्ष्य केवल “पात्र लाभार्थियों” को सामाजिक सुरक्षा, मेडिकेयर और मेडिकेड जैसे कार्यक्रमों का लाभ पहुँचाना है। व्हाइट हाउस के बयान में डेमोक्रेट्स पर आरोप लगाया गया कि वे “अवैध विदेशियों को इन योजनाओं का लाभ देना चाहते हैं, जिससे अमेरिकी वरिष्ठ नागरिकों को नुकसान होगा।”
निष्कर्ष क्या है
यह घटनाक्रम अमेरिकी समाज और राजनीति में गहराते संकट की ओर इशारा करता है। सवाल यह है कि क्या दुनिया भर में ‘लोकतंत्र का चैंपियन’ कहलाने वाला देश अपने घर की आग को बुझा पाएगा? इस स्थिति का वैश्विक राजनीति पर भी गहरा प्रभाव पड़ने की आशंका जताई जा रही है।