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औरंगजेब का ‘डर’ या नफ़रत? शौचालय पर लगे पोस्टर ने छेड़ा इतिहास का तूफान!

औरंगजेब के नाम पर शौचालय पोस्टर विवाद: इतिहास की ‘तोड़-मरोड़’ और धार्मिक उन्माद पर बहस तेज़

 

हाल ही में देश के कुछ हिस्सों में मुगल शासक औरंगजेब व बाबर के नाम को लेकर एक विवादास्पद घटना सामने आई है। कट्टर हिंदू संगठनों से जुड़े कुछ लोगों ने शौचालयों और मूत्रालयों के बाहर औरंगजेब और बाबर के नाम वाले पोस्टर लगाए, जिनपर “औरंगजेब शौचालय” और “औरंगजेब मूत्रालय” “व बाबर शौचालय” आदि लिखा हुआ था। यह कदम ऐतिहास को लेकर बढ़ती ध्रुवीकृत बहस को एक नया आयाम देता है, साथ ही सवाल उठाता है कि क्या यह इतिहास के राजनीतिक इस्तेमाल का मामला है या फिर धार्मिक उन्माद फैलाने की कोशिश।

क्या है मामला?

दिल्ली, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों में सार्वजनिक शौचालयों पर औरंगजेब के चित्र वाले पोस्टर लगाए गए। इन पोस्टरों के साथ लिखे संदेशों में मुगल शासन काल के दौरान हिंदुओं पर हुए “अत्याचारों” का जिक्र करते हुए औरंगजेब को प्रतीकात्मक रूप से अपमानित किया गया। कुछ संगठनों का दावा है कि यह “ऐतिहासिक न्याय” का प्रतीक है, जबकि विरोधी इसे इतिहास की गलत व्याख्या और साम्प्रदायिक नफ़रत फैलाने की साजिश बता रहे हैं।

विरोध और समर्थन में आवाज़ें

कट्टरपंथी हिंदू समूहों का तर्क: “मुगल शासकों ने हिंदुओं पर ज़ुल्म ढाए, मंदिर तोड़े, और जज़िया कर लगाया। औरंगजेब का नाम भारतीय इतिहास के काले अध्याय का प्रतीक है। यह पोस्टर उनकी विरासत को चुनौती देते हैं।”

इतिहासकारों की प्रतिक्रिया: प्रसिद्ध इतिहासकारों के अनुसार, “इतिहास को सिर्फ़ नफ़रत की लेंस से देखना खतरनाक है। मुगल काल में सहिष्णुता और संघर्ष दोनों के उदाहरण हैं। ऐसे कृत्य सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुँचाते हैं।”

राजनीतिक प्रतिक्रिया: भारतीय सेक्युलर राजनेताओं के अनुसार , “इतिहास को वर्तमान की राजनीति का हथियार बनाना देश की एकता के लिए घातक है। सरकार को ऐसे तत्वों के खिलाफ सख़्त कार्रवाई करनी चाहिए।”

कानूनी पहलू: क्या कहता है कानून?

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153A (साम्प्रदायिक घृणा फैलाना) और धारा 295A (धार्मिक भावनाएं आहत करना) के तहत ऐसे मामलों में कार्रवाई का प्रावधान है। हालांकि, अब तक इन पोस्टरों को लगाने वाले समूहों के खिलाफ कोई औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं हुई है। पुलिस ने मामले की जांच का दावा करते हुए कहा है कि “कानून का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई की जाएगी।”

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया

सोशल मीडिया पर यह मुद्दा ट्रेंड कर रहा है। कई यूजर्स का कहना है कि “औरंगजेब का डर आज भी हिंदुओं में है, जो उनकी कथित बर्बरता को दर्शाता है,” जबकि दूसरे पक्ष का मानना है कि “यह नफ़रत फैलाने का एक सुनियोजित अभियान है, जिसमें इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश किया जा रहा है।”

निष्कर्ष: सवाल बाकी

यह घटना एक बार फिर सवाल खड़ा करती है कि क्या भारत में इतिहास की व्याख्या साम्प्रदायिक एजेंडे के तहत की जा रही है? सरकार और न्यायपालिका की भूमिका इस मामले में अहम होगी। विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि ऐसे कृत्य देश की सांस्कृतिक विविधता और सामाजिक शांति के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं।

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