
मेरठ में इफ्तार पार्टी के आयोजन पर चौकी प्रभारी सस्पेंड! अगर पूजा हो सकती है, तो इफ्तार क्यों नहीं?”
मेरठ में पुलिस चौकी उद्घाटन पर सांप्रदायिक विवाद: पूजा के बाद इफ्तार पार्टी से हटाए गए चौकी प्रभारी
मेरठ के एक नए पुलिस चौकी के उद्घाटन को लेकर सांप्रदायिक विवाद छिड़ गया है। चौकी के उद्घाटन पर हिंदू रीति-रिवाज से पूजा-अर्चना की गई, लड्डू बांटे गए और दावत हुई, लेकिन चौकी प्रभारी शैलेंद्र प्रताप सिंह द्वारा शाम को आयोजित रोजा इफ्तार पार्टी को लेकर विवाद हो गया। इसके चलते उन्हें सस्पेंड कर चौकी प्रभारी के पद से हटा दिया गया है। मामले पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह “सबका साथ, के सिद्धांत के खिलाफ नहीं है?
घटनाक्रम: पूजा से इफ्तार तक
उत्तर प्रदेश में मेरठ के लोहिया नगर थाना क्षेत्र स्थित ज़ाकिर कॉलोनी पुलिस चौकी में आयोजित इफ्तार पार्टी का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद एसएसपी ने चौकी प्रभारी को सस्पेंड कर दिया।
गौरतलब है कि इस चौकी का उद्घाटन 17 मार्च को ही किया गया था। इस दौरान हिंदू परंपरा के अनुसार पूजा-अर्चना की गई, प्रसाद वितरित किया गया और स्थानीय लोगों के साथ दावत का आयोजन हुआ। हालांकि, शाम को चौकी प्रभारी शैलेंद्र प्रताप सिंह ने रमजान के दौरान मुस्लिम समुदाय के साथ एक रोजा इफ्तार पार्टी आयोजित की। इस आयोजन को लेकर सोशल मीडिया और स्थानीय स्तर पर बहस शुरू हो गई। कुछ लोगों ने इसे “सांप्रदायिक तुष्टीकरण” बताया, जबकि अन्य ने इसे सामुदायिक सद्भाव का कदम कहा।
प्रशासन ने कार्रवाई क्यों की?
आलोचनाओं के बीच पुलिस प्रशासन ने शैलेंद्र प्रताप सिंह को चौकी प्रभारी के पद से हटाने का आदेश जारी किया। प्रशासन के अनुसार, यह कदम “अनुशासनात्मक कारणों” और “संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए” लिया गया। हालांकि, इस फैसले पर सवाल उठ रहे हैं कि क्या पूजा और इफ्तार पार्टी के साथ अलग-अलग नजरिए से व्यवहार किया गया?
“सबका साथ” पर सवाल
स्थानीय नागरिक अख्तर हुसैन ने कहा की अगर पुलिस चौकी के उद्घाटन पर पूजा हो सकती है, तो इफ्तार पार्टी से घबराहट क्यों? क्या यह सरकार के ‘सबका साथ’ के दावे का खोखलापन नहीं दिखाता? वहीं, हिंदू संगठनों के एक प्रतिनिधि ने दावा किया कि “पुलिस का काम धार्मिक आयोजन करना नहीं है। इफ्तार पार्टी अनावश्यक थी।”
चौकी प्रभारी का आम नागरिकों ने किया बचाव
आम नागरिकों का कहना है कि दरोगा जी का इरादा सामुदायिक पुलिसिंग को मजबूत करना था। उन्होंने कहा कि रोजा इफ्तार पार्टी सोशल पुलिसिंग का हिस्सा है। उन्होंने सभी समुदायों के लोगों को जोड़ने की कोशिश की। अगर पूजा हो सकती है, तो इफ्तार क्यों नहीं?”
राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
विपक्षी नेताओं ने इस घटना को “सांप्रदायिक पूर्वाग्रह” बताया। कुछ नेताओं का कहना है कि पुलिसकर्मियों पर इस तरह की कार्रवाई से धार्मिक भेदभाव की बू आती है।
निष्कर्ष: सवाल बरकरार
यह मामला एक बार फिर उस बहस को हवा दे रहा है कि क्या भारत में धार्मिक आयोजनों के साथ समान व्यवहार होता है। जहां एक तरफ पुलिस चौकी के उद्घाटन पर पूजा को सामान्य माना गया, वहीं इफ्तार पार्टी को “अनुशासनहीनता” कहकर अधिकारी को हटाने का फैसला समाज में मिश्रित प्रतिक्रियाएं पैदा कर रहा है।
प्रशासन अब तक इस मामले पर विस्तृत बयान देने से बच रहा है, लेकिन यह स्पष्ट है कि यह घटना सांप्रदायिक सौहार्द और पुलिसिंग के नए मॉडल पर गंभीर बहस छेड़ने वाली है।