संपादकीय

देश और समाज की रगों में दौड़ता सांप्रदायिकता का ज़हर 

देश और समाज की रगों में दौड़ता सांप्रदायिकता का ज़हर 

हरियाणा में छिड़ी सांप्रदायिक हिंसा को लेकर यह एक चिंताजनक विषय है जो समाज में आपसी खींचतान, विभाजन और हिंसा के बढ़ते हुए भयानक संकट की तरफ़ इशारा है। ऐसे बुरे समय में सभी सम्मानित नागरिकों, धार्मिक गुरुओं, राजनेताओं और विशेषकर युवाओं से शांति, धार्मिक समरसता व आपसी भाईचारे प्रेम और सौहार्द को कायम करने के लिए पंथ धर्म और दल से ऊपर उठकर आगे आना होगा।

सांप्रदायिक हिंसा देश में समृद्धि और विकास के रास्ते में एक बहोत बड़ी आड़ है। धार्मिक और सांस्कृतिक विभिन्नता भारतीय समाज की एकता का सबूत है और एकता में अनेकता का एक खूबसूरत गुलदस्ता है और हरियाणा भी इसका एक प्रमुख उदाहरण है। हमारी संस्कृति और अनुशासन ने हमेशा से विविधता को स्वीकारा है और अनेकता में एकता वाले इस खूबसूरत गुलदस्ते को सजा कर और सहेज कर रखा है और आपसी सम्मान व धार्मिक समरसता और सौहार्द को प्रोत्साहित किया है।
इस मामले में, सरकार, राजनेतिक दलों, सामाजिक संगठनों, धार्मिक नेताओं, युवाओं व अख़बारों और सोशल मीडिया के सहयोग से लोगों को जागरूक करना बहुत ज़रूरी है, इसके लिए सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षित व्यक्ति महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जो कि सद्भावना, आपसी भाईचारे, धार्मिक समरसता और समाजिक एकता को स्थापित करने के लिए बहुत बड़ा योगदान दे सकते हैं और वो मील का पत्थर साबित हो सकते हैं ।

धार्मिक गुरुओं, सामाजिक संगठनों और सांस्कृतिक नेताओं को भी समाज और  देश को बचाने के लिए आगे आना होगा, वे अपने समुदाय के बीच भाईचारा, आपसी प्रेम और धार्मिक समरसता का संदेश पहुंचाकर स्थिति को सुधारने में मदद कर सकते हैं।

हमें ख़ुद भी व्यक्तिगत स्तर पर धार्मिक सौहार्द और समरसता को बढ़ावा देना चाहिए। हमें आपस में एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और धार्मिक समरसता के लिए अपनी ओर से योगदान देना चाहिए।
इस संकट के समय में, हमें सावधान रहने की जरूरत है और बार-बार आपसी बातचीत और वार्तालाप को बढ़ावा देने के लिए हमेशा पहल करनी चाहिए। शांति और धार्मिक समरसता को स्थापित करने के लिए समाज के हर व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारियों को समझने और पूरा करने का संकल्प भी लेना होगा।

इस संदर्भ में, हरियाणा सरकार को भी सांप्रदायिक वारदातों के खिलाफ सख़्त कानूनी कार्रवाई और दोषियों को सज़ा देने के लिए सुनिश्चित करना चाहिए, साथ ही धार्मिक स्थलों और सामुदायिक धार्मिक आयोजनों में भी धार्मिक समरसता का संदेश बड़े पैमाने पर प्रचारित होना चाहिए।
सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए, न्यायपूर्वक कदम उठाना और दोषियों को सजा देना समाज को बचाने के लिए बहुत ज़रूरी है। इसके साथ ही, समाज में आपसी समझदारी, सहन शक्ति व क्षमाशक्ति को बढ़ावा देना भी बहुत ज़रूरी है।
अगर हम सभी मिलकर इन छोटी छोटी व महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान देते हैं, तो हम सांप्रदायिक हिंसा को रोक सकते हैं और धार्मिक समरसता, शांति व आपसी भाईचारे प्रेम और सौहार्द से लबरेज़ एक बेहतर समाज की रचना कर सकते हैं।

अरशद चौधरी
मुख्य सम्पादक - विजिलेंस मीडिया ग्रुप

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