उत्तर प्रदेश शामली

तिथि आते ही सभी प्रत्याशी बिल से बाहर निकल कर बन गए है प्रमुख समाजसेवी

समाज सेवा के बड़े-बड़े दावे करने वाले चेयरमैन पद के भावी उम्मीदवार चुनाव हटते ही कार्यालय वीरान कर गायब हो गए थे

 

 

अब तिथि आते ही सभी प्रत्याशी बिल से बाहर निकल कर बन गए है प्रमुख समाजसेवी

 

सादिक सिद्दीक़ी कांधला

कांधला कस्बे में गरीबों मजदूरों के सबसे बड़े हमदर्द बनकर उनके दुख दर्द में हर समय शरीक रहने का दम भरने और स्वयं को बड़ा समाजसेवी प्रदर्शित करने वाले साम दाम दंड भेद अपनाकर चेयरमेन पद कबजाने की फिराक में लगे उम्मीदवार चुनाव हटते ही बरसाती मेंढक की तरह गायब हो गए थे एक दो को छोड़कर सभी के दुल्हन बने कार्यालय वीरान नजर आ रहे थे वहां से दरी आदि सामान समेट लिया गया था

मालूम हो कि नगर निकाय चुनाव समय पर संपन्न कराने की प्रदेश सरकार की मंशा पर पिछड़ा वर्ग आरक्षण को लेकर उच्च न्यायालय में हुए वाद दायर के कारण ग्रहण लग गया था इसी के चलते कसवे की सूरत और सीरत बदलने के लंबे चौड़े दावे करके जनता के सच्चे हमदर्द बनने का दम भरने वाले भावी चेयरमैन पद के एक दर्जन से अधिक उम्मीदवारों ने अपनी दरिया और चादर जहां समेट कर रख ली थी वहीं कार्यालय से कुर्सी भी हटा दी गई थी एक दो भावीं प्रत्याशियों को छोड़ अधिकांश के कार्यालय वीरान पड़े थे अब ना उस तरफ जनता ही पहुंचती थी और ना ही भावी चेयरमैन अपने दफ्तर में बैठने की हिम्मत दिखा पा रहे थे यूं कहिए कि सवेरे से देर रात तक गुलजार रहने वाले कार्यालय चुनाव हटते ही विरान बन गए थे उम्मीदवारो के गायब हो जाने तथा कार्यालय वीरान होने से पूर्व में सवेरे से शाम तक कई कई प्रत्याशियों के कार्यालय पर जाकर चिकन बिरयानी एवं शाम का गला तर करने वाले लोग तो नेताओं के गायब होने से भारी परेशान थे सर्वाधिक परेशानी तो उन छुट भैया नेताओं को हो रही थी उन्हें अपना खर्चा पानी नही मिल पा रहा है था और नाही नेताजी के दीदार हो पा रहे हैं।

ठेकेदारों की दुकानों के शटर गिरे हुए थे सूत्रों की मानें तो कुछ नेता तो टिकट की चाहत में अपनी अपनी पसंद की राजनीतिक पार्टी के आकाओं की पास चक्कर लगा रहे थे इधर गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले उम्मीदवारो के दावो और घोषणाओं से जनता अपने आपको ठगा सा महसूस कर रही थी…

 

चुनाव की तिथि आते ही सभी प्रत्याशी बन गए हैं प्रमुख समाजसेवी

 

उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव की तारीखों का ऐलान होते ही सभी प्रत्याशी अपने आप को प्रमुख समाजसेवी बनाने लग गए हैं और वोटरों को लुभाने के लिए उनके घर तक आना जाना शुरू कर दिया गया है तो वही दुल्हन की तरह अपने कार्यालय भी सजाने लगे है व कार्यालय भी खोलने सुरु हो गए है वही चुनाव का सिलसिला शुरू होने के साथ ही चुनाव-प्रचार ने जोर पकड़ लिया है। राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता भी गली-मोहल्लों में निकल आए हैं। रात और दिन चुनाव प्रचार में लगे कार्यकर्ताओं व चुनाव कार्यालय पर आने वाले लोगों के खानपान का इंतजाम भी उम्मीदवारों ने कर रखा है। सुबह से आधी रात तक चाय-कॉफी, नाश्ता सहित भोजन भी दिया जाने लगा अब यह तो आने वाले समय के गर्भ में छिपा है आने वाले वक्त में होता क्या है…

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