उत्तर प्रदेश बागपत

प्राइवेट स्कूलों की किताबें स्कूलों द्वारा निर्धारित की गई दुकानों से ही क्यों मिलती है

 

जिला।  बागपत ब्यूरो चीफ

सैय्यद वाजिद अली की रिपोर्ट 

प्राइवेट स्कूलों की किताबें स्कूलों द्वारा निर्धारित की गई दुकानों से ही क्यों मिलती है

बागपत, प्राइवेट स्कूलों में सरकारी स्कूलों का आगामी सत्र शुरू होने की तैयारी में है। और इसी के साथ शुरू होता है। अभिभावकों की जेब पर डाका और यह डाका कोई और नहीं उनके नौनिहालों को शिक्षा का ज्ञान दे रहे उन स्कूलों के द्वारा ही डाला जाता है। जिनके ऊपर उन बच्चों का भविष्य संवारने सुधारने की जिम्मेदारी होती है। इसकी शुरुआत स्कूलों से शुरू होकर किताबों की दुकान पर जाकर खत्म होती है। लेकिन तब तक उन अभिभावकों का जो हाल होता है। वह किसी से नहीं छुपा है। स्कूल मैं एनुअल चार्ज से शुरू हुआ यह आर्थिक शोषण बुक डिपो पर जाकर समाप्त होता है। स्कूल संचालक जिस बुक डिपो पर अभिभावकों को भेजते हैं। उस बुक डिपो के संचालक से एक मोटी रकम एडवांस में ले लेते हैं।जिसे वह बुक संचालक अभिभावकों की जेब से उसका चार गुना वसूलता है। उसे समझने के लिए किसी भी उत्पाद की कीमत बाज़ार के हिसाब से उसकी कीमत रखी जाती है।लेकिन कोई भी प्रकाशक ऐसा नही करता वो बुक की कीमत बुक सेलर व स्कूल के कमीशन को काटकर तय किया जाता है। ओर यह कमीशन 70% प्रतिशत तो होता है।स्कूल का यानी जो कोर्स आप अपने बच्चों का एक हज़ार लाते हो वो मात्र तीन सौ रुपये का होता है। जिसे आप एक हज़ार का लेकर खुश होते हो। जबकि जो स्कूल सीबीएससी बोर्ड से मान्यता प्राप्त होते हैं। उनको केंद्र सरकार द्वारा प्रकाशित एनसीआरटी का कोर्स लगाना अनिवार्य होता है। और जो स्कूल उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त होते हैं। उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रकाशित कोर्स लगाना अनिवार्य होता है। जिनकी कीमत प्राइवेट कोर्स के मुकाबले ना के बराबर होती है। लेकिन उपरोक्त कोर्स लगाए जाने के बाद स्कूल संचालकों को कोई कमीशन नहीं मिलता यही कारण है। कि यह स्कूल संचालक अभिभावकों को अपने द्वारा निर्धारित की गई दुकानों पर भेजते हैं। नगर बड़ौत के मोहल्ला खत्री गढ़ी में स्थित एक लोहे की दुकान थी जो अब एक स्टेशनरी की दुकान में परिवर्तित हो चुकी है। उपरोक्त दुकान से प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए का कारोबार होता है। यहां बड़ोत शहर के नामचीन स्कूलों का कोर्स विक्रय किया जाता है। वही नगर के गांधी चौक में एक दुकानदार ने तो यह काम गाँवो में भी शुरू कर दिया है। उसने पाँच करोड़ रुपये में वहाँ अपना घर व दुकान दोनो खड़े कर दिए है। वही गली किताबों वाली गांधी रोड आदि जगहों पर ऐसी कई दुकानें खुली हैं। जो स्कूलों को मोटा रुपया देकर वहां पढ़ रहे बच्चों को खरीद लेती हैं। और उसके बाद फिर उनके अभिभावकों की जेबे काटकर स्कूलों को दी रकम का दस गुना वसूलते हैं। उक्त प्रकरण को लेकर जब बीएसए बागपत से बात करनी चाहिए तो उन्होंने फोन नहीं रिसीव नहीं किया अगर शिक्षा विभाग चाहे तो यह लूट तत्काल बंद हो सकती है। लेकिन प्रकाशकों व बुक सेलरो द्वारा इस लूट का कुछ हिस्सा शायद उन्हें भी दिया जाता है। लेकिन इस लूट के कारण मरता तो गरीब अभिभावक ही है। इस और ना ही किसी प्रशासनिक अधिकारी और ना ही हमारे किसी नेता या समाज सेवक या किसी सामाजिक संगठन का ध्यान इस ओर जाता है और यह लूट पिछले बीस पच्चीस सालों से ऐसे ही जारी है। और आगे और इसमें इजाफा होने के अधिक चांस है। एक पीड़ित अभिभावक जो उक्त प्रकरण को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक पहुंचाने का प्रण ले चुका है। उसके आग्रह के बाद हम यहां उसका नाम पता उजागर नहीं करेंगे

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