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मुफ्त वितरण एक ‘गंभीर मुद्दा’, इससे अर्थव्यवस्था का पैसा डूब रहा है: सर्वोच्च न्यायालय

नई दिल्ली:

राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त में सुविधाएं देने के चुनावी वादों के खिलाफ दायर की गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि चुनावो के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार का वादा और वितरण “एक गंभीर मुद्दा” है क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है। शीर्ष अदालत अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें चुनावों से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए ‘मुफ्त’ का वादा करने वाले राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी। याचिका में चुनाव घोषणापत्र को विनियमित करने और उसमें किए गए वादों के लिए राजनीतिक दलों को जवाबदेह बनाने के लिए कदम उठाने के लिए कहा गया है।

बार एंड बेंच के अनुसार इस मामले की सुनवाई करते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण ने कहा, “कोई नहीं कहता कि यह कोई मुद्दा नहीं है। यह एक गंभीर मुद्दा है। जिन्हें सुविधाएं मिल रही हैं वह इसे पाना चाहते हैं और हम एक कल्याणकारी राज्य हैं। कुछ लोग कह सकते हैं कि वे करों का भुगतान कर रहे हैं और इसका उपयोग विकास प्रक्रिया के लिए किया जाना है। तो यह एक गंभीर मुद्दा है। इसलिए समिति को दोनों पक्षों को सुनना पड़ेगा।”

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने यह भी कहा कि भारत एक ऐसा देश है जहां गरीबी है और केंद्र सरकार की भी भूखों को खिलाने की योजना है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि लोक कल्याण की योजनाओं और मुफ्त सुविधाओं को संतुलित करना होगा। शीर्ष अदालत इस मामले में अगली सुनवाई 17 अगस्त को करेगी।

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