हमारे कस्बे का चेयरमैन कैसा होना चाहिए इस पर एक छोटी सी चर्चा
पत्रकार सादिक सिद्दीकी
आप सभी का बहुत -बहुत अभिवादन. मुझे आशा है कि अब आपको मेरा ये ब्लॉग भविष्य में और ज्यादा पसन्द आयेगा क्योंकि मैं अब इस पर एक्टिव तो रहूँगा ही, साथ ही सरकार पर सरकार की भूमिका पर और सरकार के प्रति लोगों के रवैये पर भी बात करूँगा. एक आम आदमी जो सवाल सरकार पर या तो उठाता है या फिर उसके मन में उठते हैं, मेरी कोशिश ये है कि वो सभी सवाल मैं आपके सामने रख सकूँ क्योंकि आप भी जनता ही हैं, मैं भी जनता में से एक कोई एक हूँ और सरकार के अस्तित्व भी तो जनता से ही है. अब मैंने अपनी लिखने की शैली में थोडा सा परिवर्तन किया है और वो परिवर्तन ये है कि मैं अब छोटे-छोटे आर्टिकल लिखूँगा लेकिन अपनी हैडिंग के माध्यम से ज्यादा से ज्यादा मैसेज आप तक पहुँचाने के कोशिश करूँगा. तो चलिये, आज का टॉपिक शुरू करते हैं. आज का टॉपिक है कस्बे का चेयरमैन कैसा हो चूंकि अभी उत्तर प्रदेश में चुनाव को लेकर गहमा-गहमी बहुत ज्यादा है और ये चर्चा बहुत है कि चेयरमैन आखिर हो कैसा ? ऐसे में ये जरूरी हो जाता है मैं इस पर अपने विचार रखूँ. तो चलिये शुरू करते हैं.
कस्बे का चेयरमैन कैसा होना चाहिये ?
वही जो कस्बे का विकास कर सके. विकास की क्या परिभाषा है ? चेयरमैन वो जो कस्बे में नाली की निकासी का उचित प्रबन्ध कर सके. ये नही कि सड़कों पर ही पानी भरा पड़ा है और आप चेयरमैन पद पर काबिज हो जाने पर ही खुश हुए जा रहे हैं. आखिरकार सार्वजनिक समस्याओं के निदान के लिये ही तो जनता चेयरमैन को चुनती है. अगर वो भी सही तरीकें से और समय पर हल ना हो पायें तो चेयरमैन पद के प्रति लोगों में कोई अच्छी सोच वाली छवि कहाँ बनी रह पायेगी ?
चेयरमैन वो जो कस्बे में रोशनी की व्यवस्था कर सके. फिर चाहे वो स्ट्रीट लाइट हो ये फिर कस्बे की आम बिजली ! अगर इस दौर में भी कस्बे में बिजली सम्बन्धी दिक्कत है और चेयरमैन पद पर आसीन व्यक्ति उसे त्वरित कारवाई करके हल नही करा सकता है तो फिर उसके चेयरमैन-पद की योग्यता पर सवाल उठना स्वाभाविक है
चेयरमैन
वो जी जब कस्बे का ट्रांसफार्मर ख़राब हो तो चेयरमैन को सबसे पहले ये चिन्ता हो कि वो ट्रांसफार्मर जल्द से जल्द ठीक हो. ये नही कि लाइट के इस ज़माने में भी 10-15 दिन ट्रांसफार्मर आने ही निकल जाये.
चेयरमैन वो जो प्राइमरी स्कूल में समय-समय पर अध्यापकों से मिलकर बच्चो की शिक्षा पर चर्चा करता रहे ताकि अध्यापकों को भी काम करने के लिये एक प्रेरणा मिलती रहे.ज़ब चेयरमैन खुद एक्टिव होगा तो वो प्राइमरी स्कूल के अध्यापकों को जरूर इस बात के लिये प्रेरित कर सकेगा कि बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले
चेयरमैन वो जो कि गाँव के वाद-विवाद को पुलिस-चौकी तक जाने से रोक सके क्योंकि फालतू के वाद-विवाद से पुलिस का टाइम भी ख़राब होता है और कुछ दलालों की चाँदी हो जाती है और अक्सर इस तरह के मामलों में आर्थिक रूप से कमजोर पक्ष पैसे के कर्ज की चपेट में भी आ जाता है. अगर विवाद ज्यादा गहरा है तब तो अलग बात है लेकिन छोटे-मोटे झगड़े जिसमें कि ये आशंका हो कि इसमें दलालों को फायदा मिल जायेगा और गरीब आदमी मारा जायेगा, ऐसे विवाद को आपस में ही सुलझा सके, चेयरमैन ऐसा होना चाहिये
चेयरमैन ऐसा हो जिसके मन में चेयरमैन का कुछ भला करने की इच्छा भी हो और उसे ज्ञान भी हो. मान लीजिये कि चेयरमैन की इच्छा तो है और उसे ज्ञान नही तो वो भी बेकार ही है. वो या तो पढ़ा-लिखा सुशील हो ये फिर ऐसा हो कि पढ़ा-लिखा कम भी हो पर इतना व्यवहारकुशल हो कि अपनी व्यवहारकुशलता से कस्बे का विकास कर सके.
दूसरी स्थिति ये है कि उसे ज्ञान तो है, पर उसकी इच्छा सिर्फ अपनी तिजोरी भरने की है तो वो भी बेकार है. वो ऐसा भी न हो कि
“सुनते है जिस दिन मिला पाँच लाख अनुदान
नयी जीप में बैठ कर घर पहुँचे चेयरमैन
तो ऐसा भी नही होना चाहिये. चेयरमैन ऐसा हो कि जिसकी अगर बाहर किसी जिला पंचायत सदस्य या किसी ब्लॉक प्रमुख या किसी विधायक या किसी सांसद से जानकारी हो तो उसका कुछ लाभ कस्बे वालों को मिले. ये नही कि अपनी जान-पहचान की वो डींगे ही मारता रहे रो कस्बे को लाभ कुछ भी ना हो. ये भी ना हो कि वो चेयरमैन बड़े नेताओं से जान-पहचान की आड़ में अवैध धंधे करे या फिर चरित्रहीनता करे और झूठा रौब ग़ालिब करता फिरे. ऐसा चेयरमैन नही होना चाहिये. अगर अच्छे पद पर सुशोभित व्यक्ति ऐसे काम करेगा तो कस्बे की नैतिकता को भी ठेस पहुँचेगी क्योंकि चेयरमैन में लोग एक अच्छी, चारित्रिक रूप से स्वस्थ छवि की कामना करते हैं.
तो दोस्तों, मेरे हिसाब से ये सब गुण तो चेयरमैन में होने ही चाहिये. मैं अपने अगले ब्लॉगपोस्ट में आगे की चर्चा या तो इसी टॉपिक पर और करूँगा या फिर कुछ और महत्वपूर्ण चर्चा करूँगा. तब तक के लिये आप मेरे इस ब्लॉग से जुड़े रहिये और लगातार पढ़ते रहिये मेरा ये ब्लॉग “सवाल सरकार पर”.