- पूरे देश के मुसलमानों को आज इस तंज़ीम के ज़िम्मेदारान को सेल्यूट करना चाहिये..!
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और दुआओं के साथ जमीयत को अपना मआशी तआउन भी करना चाहिये ताकि हमारी लड़ाई कभी कमज़ोर न पड़े.!
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देवबंद:- कल पूरे देश और दुनियाँ की निगाहें जब दिल्ली जहाँगीरपुरी में हुकूमत की तानाशाही का तमाशा देखने में लगी थीं तब “जमीअत उलेमा ए हिन्द” सुप्रीम कोर्ट के दरवाज़े पर खड़ी इन ग़रीब मज़लूमों की दूकानें बुलडोज़र से बचाने की जद्दोजहद कर रही थी। अल्लाह ने कामयाबी दी और सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत जहाँगीरपुरी की कार्यवाही रोकने का स्टे आर्डर जमीयत के हाथ में दिया और फिर एक बार जमीयत के ज़िम्मेदारान ज़ुल्म के ख़िलाफ़ लड़ते नज़र आये!
1919 में जब अब्दुल बारी फ़िरंगी महली, अहमद सईद देहलवी, इब्राहीम सियालकोटी, किफ़ायत उल्लाह देहलवी और सना उल्लाह अमृतसरी और दीगर ज़िम्मेदारान ने जमीयत-ए-उलमा-ए-हिन्द तंज़ीम की स्थापना की थी तब शायद उनकी यही दूरदर्शी सोच रही होगी कि जब हिंदुस्तानी मुसलमानों के साथ कोई नहीं खड़ा होगा तब उनपर होरहे ज़ुल्म के ख़िलाफ़ उनकी हर लड़ाई जमीयत लड़ेगी.!
अल्हम्दुलिल्लाह आज रेशमी रूमाल की तहरीक से जंग-ए-आज़ादी का बिगुल बजाने वाले मुजाहिद मौलाना महमूदुल हसन के विरसे के तौर पर मौलाना अरशद मदनी साहब और मौलाना महमूद मदनी साहब इस ज़िम्मेदारी को बख़ूबी निभा रहे हैं। जब भी हिंदुस्तान के मुसलमानों पर कोई आफ़त आयी जमीयत हर मोड़ पर खड़ी नज़र आई, चाहे पूरे देश में आतंकवाद के फ़र्ज़ी केस में मुस्लिम नौजवानों के मुक़दमे की लड़ाई हो, या बाबरी मस्जिद का मुक़दमा, चाहे असम में मुसलमानों पर हो रहे ज़ुल्म की लड़ाई हो या NRC के तहत उन्हें बेदखल करने का मुक़दमा, चाहे मुज़फ्फर नगर के दंगा पीड़ितों के रिहायशी मकानात मुहैय्या कराने के इंतज़ामात हों या असम के मुसलमानों के रिहाइश के इंतज़ामात हर जगह हर लड़ाई जमीअत अपने ख़र्च पर लाद रही है, सरकारों से ज़्यादा मकानात दंगा पीड़ितों को जमीयत ने अपने खर्च पर बनवाकर दिया.!
आज किसी भी शहर में कोई मामला हो जमीयत के ज़िम्मेदाराना बग़ैर शोर शराबे के ख़ामोशी से मदद कर आते हैं और हमें आपको ख़बर भी नहीं होती.! इन्हें न आपका वोट चाहिये न आपकी तारीफ़ ! बिना किसी मफ़ाद के ये हमारी लड़ाई लड़ते हैं ! अल्लाह जमीयत और उसके ज़िम्मेदारान को सलामत रक्खे.!