शामली

पत्रकारिता का चौला ओढ़कर की जा रही वसूली, ब्लैकमेलिंग, अवैध उगाही

फर्जी पत्रकारों की बाढ़ में कलमकारों को ढूंढना पड़ रहा भारी

5 वी फैल यहां तक कि अंगूठा छाप भी लिए फिरते है पत्रकारिता का सर्टिफिकेट

पत्रकारिता यू तो लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है, पत्रकार वही होता है, जिसके सवालों में दम और बेबाक लेखनी का माहिर हो। समाज को आइना दिखा सके, लेकिन साहब यहां तो पत्रकार नहीं बल्कि ब्लैकमेलरों की संख्या ज्यादा नज़र आती हैं, ऐसे कथित पत्रकार जिन्हें न पढ़ना आता, न बोलने की कोई तहज़ब है। न सवालों का कोई पता और न ही पत्रकारिता की सही मायने में कोई समझ है। सिर्फ ब्लैकमेलिंग और अवैध उगाही को पत्रकारिता समझते हैं, जिनके कारण पत्रकारिता में महारत रखने वाले सम्मानित पत्रकारों को भी कभी कभी अपमान का सामना करना पड़ जाता है। ऐसे कथित पत्रकार न डॉक्टर्स को देखते है, न किसी ठेले वाले को देखते है।
आरएनआई ( रजिस्ट्रेशन न्यूज़पेपर ऑफ इंडिया ) में नही है कोई रिकॉर्ड फिर भी धड़ल्ले से छाप रहे अखबार

इन कथित पत्रकारों की वजह से पत्रकारिता का स्तर गिर जाता है, और इनमें अकड़, एटीट्यूड बेशुमार दिखता हैं, जबकि अंदर न कोई ज्ञान होता है और न ही शिक्षा उनके पास होती है।
ब्लैकमेलिंग करने वाले ऐसे ही कुछ पत्रकारिता का चौला ओढ़कर ब्लेकमेलर आपके पास यदि आये तो उनसे उनकी शैक्षिक योग्यता पूछकर उनसे दो चार सवाल उल्टे कर लेना, और जरूरत पड़ने पर तुरंत उन्हें पुलिस को सौप देना।
क्योकि ब्लैकमेलिंग की नीयत से आपके काम मे दखल देने वाले ऐसे फर्जी लोग पत्रकार नहीं होते। बस कार्डधारक हो सकते है। उनसे डरने की बजाय बल्कि उन्हें मुह तोड़ जवाब देकर चलता करे, न माने तो पुलिस को शिकायत कर उन्हें हवालात का रास्ता दिखाए।
ऐसा मुज़फ्फरनगर, शामली, कैराना, सहारनपुर में खासकर देखने को मिलता है।
एक अनपढ़ पत्रकार बीयूएमएस, एमबीबीएस डॉक्टर से ऐसे सवाल करता है, जैसे वो कोई सर्जन हो, आपने दवाई गलत दी, इस पर रिएक्शन हो गया, आपने इतनी बड़ी गलती कैसे की।
जैसे पत्रकार न हुआ कोई स्वास्थ्य या सम्बंधित विभाग का अधिकारी हो गया। कोई उनसे पूछे कि तुम्हे निरीक्षण या जांच पड़ताल करने का अधिकार किसने दिया, इन कामो के लिए सरकारी विभाग बने है, उनमें शिकायत करे, लेकिन शिकायत करके जेब तो भारी नही होंगी, इसलिए खुद ही पत्रकार/अधिकारी बन जाते है, जबकि उनकी भाषा शैली से उनके ज्ञान का पता लग जाता है। अब हमारी टीम ऐसे ही कथित पत्रकारों की पोल खोलकर उनकी दुकाने बन्द कराने का कार्य करेंगी। यदि आपको कोई ब्लेकमेलर परेशान करता है तो बिना डरे, क्योकि वह भी खुद बहादुर नही होते, बंदरो वाली झिझकी दिखाते है। पुलिस को शिकायत करे, हमको भी जानकारी दे, ताकि उनकी पोल खोलकर समाज से ये बीमारी साफ की जा सके!

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