महावीर राणा सांगा जी
जन्म:- 12.04.1482 निधन:-30.01.1528
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उदयपुर के सिसोदिया राजपूत राजवंश के राजा तथा राणा रायमल जी के सबसे छोटे पुत्र महावीर राणा सांगा जी के जीवन पर प्रकाश डालने का प्रयास है। राणा रायमल जी की मृत्यु के बाद, सन् 1509 में, राणा सांगा जी मेवाड़ के महाराणा बन गए। राणा सांगा जी ने विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध सभी राजपूतों को एकजुट किया। राणा सांगा जी सही मायनों में एक बहादुर योद्धा व शासक थे जो अपनी वीरता और उदारता के लिये प्रसिद्ध हुए। इन्होंने दिल्ली, गुजरात व मालवा मुगल बादशाहों के आक्रमणों से अपने राज्य की बहादुरी से ऱक्षा की। उस समय के वह सबसे शक्तिशाली हिन्दू राजा थे। फरवरी सन् 1527 में खानवा केे युद्ध से पूर्व बयाना केे युद्ध (भरतपुर/राजस्थान) में राणा सांगा जी ने मुगल सम्राट बाबर की सेना को परास्त कर बयाना का किला जीता।
बयाना के युद्ध के पश्चात् 16.03.1527 में खानवा के मैैैदान में राणा साांगा जी घायल हो गए। ऐसी अवस्था में राणा सांगा जी पुनः बसवा आए जहाँ राणा सांगा की 30.01.1528 को मृत्यु हो गई, लेकिन राणा सांगा जी का विधि विधान से अन्तिम संस्कार माण्डलगढ (भीलवाड़ा/राजस्थान) में हुआ। एक विश्वासघाती के कारण वह बाबर से युद्ध हारे लेकिन उन्होंने अपने शौर्य से दूसरों को प्रेरित किया। राणा सांगा जी के शासनकाल में मेवाड़ अपनी समृद्धि की सर्वोच्च ऊँचाई पर था। एक आदर्श राजा की तरह इन्होंने अपने राज्य की रक्षा तथा उन्नति की। राणा सांगा जी अदम्य साहसी थे। एक भुजा, एक आँख, एक टांग खोने व अनगिनत ज़ख्मों के बावजूद उन्होंने अपना महान पराक्रम नहीं खोया, सुलतान मोहम्मद शाह माण्डु के युद्ध में हराने व बन्दी बनाने के बाद उन्हें उनका राज्य पुनः उदारता के साथ सौंप दिया, यह उनकी बहादुरी को दर्शाता है। खानवा की लड़ाई (भरतपुर) में राणा जी को लगभग 80 घाव लगे थे। बाबर भी अपनी आत्मकथा मैं लिखता है कि *“राणा सांगा अपनी वीरता और तलवार के बल पर अत्यधिक शक्तिशाली हो गया है। वास्तव में उसका राज्य चित्तौड़ में था। मांडू के सुल्तानों के राज्य के पतन के कारण उसने बहुत-से स्थानों पर अधिकार जमा लिया। उनका राज्य 10 करोड़ की आमदनी का था, उसकी सेना में एक लाख सवार थे। उसके साथ 7 राव 104 छोटे सरदार थे। उसके तीन उत्तराधिकारी भी यदि वैसे ही वीर और योग्य होते मुगलों का राज्य हिंदुस्तान में जमने न पाता”*
मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने अपने संस्मरणों में कहा है कि राणा सांगा हिंदुस्तान में सबसे शक्तिशाली शासक थे, जब उन्होंने इस पर आक्रमण किया, और कहा कि “उन्होंने अपनी वीरता और तलवार से अपने वर्तमान उच्च गौरव को प्राप्त किया।” 80 हज़ार घोड़े, उच्चतम श्रेणी के 7 राजा और 104 सरदारों व रावल, 500 युद्ध हाथियों के साथ युद्ध लडे। अपने चरम पर, संघ युद्ध के मैदान में 1,00,000 राजपूतों का बल जुटा सकते थे। यह संख्या एक स्वतंत्र हिंदू राजा के लिए महत्वपूर्ण थी क्योंकि इसमें चरवाहा या कोई भी जाति (जैसे जाट, गुर्जरों या अहीरों) को शामिल नहीं किया गया था। मालवा, गुजरात और लोधी सल्तनत की संयुक्त सेनाओं को हराने के बाद मुसलमानों पर अपनी जीत के बाद, वह उत्तर भारत का सबसे शक्तिशाली राजा बन गए। कहा जाता है कि संघ ने 100 लड़ाइयाँ लड़ी थीं और विभिन्न संघर्षों में उसकी आँख, हाथ और पैर खो गए थे। महाराणा सांगा जी ने सभी राजपूत राज्यो को संगठित किया और सभी राजपूत राज्य को एक छत्र के नीचे लाए। उन्होंने सभी राजपूत राज्यो संधि की और इस प्रकार महाराणा सांगा ने अपना साम्राज्य उत्तर में पंजाब सतलुज नदी से लेकर दक्षिण में मालवा को जीतकर नर्मदा नदी तक कर दिया।
राणा सांगा जी ने पश्चिम में सिंधु नदी से लेकर पूर्व में बयाना, भरतपुर, ग्वालियर तक अपना राज्य विस्तार किया। इस प्रकार मुस्लिम सुल्तानों की डेढ़ सौ वर्ष की सत्ता के पश्चात इतने बड़े क्षेत्रफल हिंदू साम्राज्य कायम हुआ इतने बड़े क्षेत्र वाला हिंदू सम्राज्य दक्षिण में विजयनगर सम्राज्य ही था। दिल्ली सुल्तान इब्राहिम लोदी को खातौली व बाड़ी के युद्ध में 2 बार परास्त किया और और गुजरात के सुल्तान को हराया व मेवाड़ की तरफ बढ़ने से रोक दिया। बाबर को खानवा के युद्ध में पूरी तरह से राणा ने परास्त किया और बाबर से बयाना का दुर्ग जीत लिया। इस प्रकार राणा सांगा जी ने भारतीय इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ दी। 16वी शताब्दी के सबसे शक्तिशाली शासक थे। इनके शरीर पर 80 घाव थे। इनको हिंदुपत की उपाधि दी गयी थी। इतिहास में इनकी गिनती महानायक तथा वीर के रूप में की जाती है।