प्रिय पाठको आपको बता दें कि पूरा मामला उत्तर प्रदेश के जनपद शामली के थाना व कस्बा क्षेत्र कांधला की नगर पालिका परिषद का है। जहां पर कुछ दिन से नगर पालिका परिषद कांधला की खामियों को नजर देखते हुए कस्बा कांधला के युवा पत्रकार सादिक सिद्दीकी न लगातार नगरपालिका की पोल खोलते हुए खबरें चलाई जिन खबरों से जनता में रोष का माहौल बना हुआ है। कूड़े के ढेर आदि को लेकर लोगों ने हाहाकार प्रशासन के ऊपर मचा दिया है। जैसे ही खबरों से अधिकारियों की कुर्सी हिलने लगी तो अधिकारी अपनी खामियों को देख बोखला ने लगे और बोखलाती कलम ने पत्रकार सादिक सिद्दीकी के खिलाफ नोटिस जारी कर दिया। आपको बताते चलें कि यह नोटिस आज से पहले कभी पत्रकार सादिक सिद्दीकी के पास नहीं पहुंचा। जबकि सादिक सिद्दीकी के द्वारा दिल्ली बस स्टैंड पर कोई खोका नहीं रखा गया है। मियां फैजी के द्वारा किराए पर दुकान सन 1985 से दी गई है। जो कि सन 1985 से लेकर अभी तक दिल्ली बस स्टैंड पर लोगों को जलपान आदि की व्यवस्था करा रहे हैं। लेकिन नगर पालिका परिषद के अधिशासी अधिकारी बोखला कर सादिक सिद्दीकी के खिलाफ अवैध रूप से दिल्ली बस स्टैंड पर खोकर रखकर अपना कारोबार चलाने का हवाला देते हुए नोटिस जारी किया है। जबकि बता दे कि वह कोई खोका नहीं है मियां जी के द्वारा किराए पर दिया हुआ दुकान है जो सन् 1985 से मिया जी ने किराया लेकर संचालित करा रखी है। और तो और यह जानकारी भी आपको दे की वह दुकान जिसको अधिकारियों ने खोखा बताया है। कोई खोखा नहीं है। वह एक दुकान है और वह दुकान सादिक सिद्दीकी युवा पत्रकार के नाम पर रजिस्टर्ड नहीं है। तो इसे साफ साफ नजर आ रहा है कि खबरों ने खोली नगर पालिका परिषद की पोल अधिकारियों की कलम ने बिना जांच पड़ताल किए पत्रकार सादिक सिद्दीकी को बनाया मोहरा युवा पत्रकार सादिक सिद्दीकी के खिलाफ नोटिस किया जारी जिससे साफ साफ जाहिर होता है। कि उस दुकान के कागजात सादिक सिद्दीकी के नाम पर नहीं है। जो कि नगर पालिका परिषद अपने बौखलाहट में पूर्ण रूप से सत्य पुष्टि जांच नहीं कर पाई और अपनी खबरों से खुलती पोल को देख सादिक सिद्दीकी को गलत नोटिस जारी कर उलझाने की कोशिश कर रही है। अब देखना यह है कि नगर पालिका अधिशासी अधिकारी की खबर दूसरी प्रकाशित होने के बाद बंद हो पाती है। या नहीं अगली खबर आने तक बने रहिए खबरों के साथ, *जब सत्ता में बैठे हो भ्रष्टाचारी तो खुलती पोल को देख फर्जी फसाने के अलावा क्या करें भ्रष्ट अधिकारी*